×

Instruments and science instruments and their uses ‘यन्त्र एवं वैज्ञानिक उपकरण’ एवं उनके उपयोग

Instruments and science instruments and their uses ‘यन्त्र एवं वैज्ञानिक उपकरण’ एवं उनके उपयोग

 ‘यन्त्र एवं वैज्ञानिक उपकरण’ एवं उनके उपयोग – ‘Instruments and science instruments’ and their uses

इस आर्टिकल में हमने विज्ञान के सभी महत्त्वपूर्ण यन्त्र एवं वैज्ञानिक उपकरण’ एवं उनके उपयोग – ‘Instruments and scientific instruments’ के बारे में बताया है | जो की कई सामान की मात्रा और क्षमता का आकलन करता है यह विषय सभी महत्वपूर्ण परीक्षा को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है  विश्व विज्ञान में प्रयोग होने वाले महत्वपूर्ण मीटर [ meter] एवं यन्त्र [divice ] को शामिल किया गया है |

 

  • ओसमोमीटर  ( osmometer )
  • बैरोमीटर  ( barometer )
  • मल्टीमीटर ( multimeter )
  • हाइग्रोमीटर  ( hygrometer  )
  • सिस्मोग्राफ – Seismograph –
  • टेलीस्कोपtelescope –
  • ब्रैथलाइजर -Breathalyzer
  • ओम – मीटर – ohm meter
  • थर्मामीटर – Thermometer 
  • वोल्ट्मीटर -Voltmeter
  • बाइनोकुलर्स – Binoculars –
  • साइक्लोट्रॉन – Cyclotron
  • एमीटर ( ammeter )
  • एनिमॉमीटर ( anemometer ) –
  • ऑडिओमीटर –  Audiometer –
  • क्रोनोमीटर – Chronometer
  • कैलोरीमीटर –    Calorimeter –
  • इलेक्ट्रोमीटर – electrometer –
  • गैल्वेनोमीटर – Galvanometer –
  • लैक्टोमीटर – lactometer
  • ऑसिलोस्कोप – Oscilloscope –
  • फैदोमीटर – Fathometer –
  • इलेक्ट्रोस्कोप – electroscope –
  • एण्डोस्कोप –  endoscope
  • कइमोंग्राफ  – Kymograph –
  • माइक्रोस्कोप -Microscope –
  • पेरिस्कोप -periscope –
  • क्रेस्कोग्राफ  –  crescograph
  • माइक्रोफोन –  microphone –
  • फोनोग्राफ – phonograph –
  • राडार – Radar –
  • रेन गेज – rain gauge
  • रेक्टिफायर –  Rectifier –
  • थर्मोमीटर – Thermometer –
  • कोनिस्कोप – Koniscope –
  • पॉलीग्राफ – polygraph
  • ट्रांसफार्मर –  Transformer –
  • इन्वर्टर –  inverter
  • स्ट्रोबोस्कोप -stroboscope
  • ऑडोमीटर  – odometer
  • स्पीडोमीटर – speedometer
  • स्प्रिंग स्केल – Spring Scale –
  • रिक्टर स्केल –  Richter scale –

 

 

  • ओसमोमीटर  ( osmometer ) -: osmometer is used to measure

ओसमोमीटर नामक डिवाइस द्वारा किसी विलयन, कोलाइड या यौगिक की परासरणी शक्ति का मापन किया जाता है। परासरणी अध्ययन के तहत कई प्रकार की विभिन्न तकनीकों का नियोजन किया जाता है,  जिनमे वेपर प्रेशर डिप्रेशन ओसमोमीटर, मैम्ब्रेन आस्मोमीटर  और फ्रेजिंग प्वाइंट डिप्रेशन आस्मोमीटर शामिल है ।

osmometer principle – 
आस्मोमीटर के आविष्कार का श्रेय फ़्रांस के वैज्ञानिक हेनरी दूतरोशेट को दिया जाता है, जिन्होंने ‘परासरण’ परिघटना की खोज की थी। परासरण एक भौतिक किया है, जिसमे घोतक के अणु बिना  किसी ब्राहा ऊर्जा के प्रोग के अर्धपारगम्य झिल्ली से होकर गति करते है ।

 

  • बैरोमीटर  ( barometer )

वायुमंडल के दबाव को मापने के लिए बैरोमीटर का प्रयोग किया जाता है । वायुदाब को मापने के लिए बैरोमीटर में पानी, हवा अथवा पारे का प्रयोग किया जाता है बैरोमीटर को ‘वायुदाबमापी’ भी कहा जाता है । सार्वभौमिक रूप से बैरोमीटर के आविष्कार का श्रेय इटली के भौतिकविद ‘ईबहानगेलिस्ट तोरिसेली’ को दिया जाता है जिन्होंने 1643 ई. में इसका आविष्कार किया, परन्तु कुछ ऐतिहासिक तथ्य बताते है की 1640 से 1643 ई. के मध्य एक अन्य इटैलियन गसपारों बर्टी द्वारा एक जल बैरोमीटर का निर्माण किया गया था । वर्ष 1845 में विडी नामक वैज्ञानिक द्वारा एनेरॉयड  बैरोमीटर ( निद्रर्व वायुदाबमापी ) का निर्माण किया गया ।

यह एक महत्वपूर्ण मौसम और वातावरणीय उपयोगिता यंत्र है, जिसका उपयोग मौसम अनुमान और वायुमंडलीय गतिविधियों के लिए किया जाता है। बैरोमीटर के द्वारा वायुदाब के परिवर्तन को मापा जाता है, जो आमतौर पर हवा के दबाव के रूप में जाना जाता है। बैरोमीटर के प्रमुख प्रकार शामिल हैं अनरोइड बैरोमीटर और मर्क्युरी बैरोमीटर। बैरोमीटर का उपयोग मौसम के परिवर्तन का पता लगाने, हवा यातायात निर्माण, और विज्ञानिक अनुसंधान में किया जाता है।

 

  • मल्टीमीटर ( multimeter )

यह एक इलेक्ट्रानिक डिवाइस है जिसका उपयोग वोल्टेज करेंट और रेजिस्टेंस  मापने के लिए किया जाता है यह डिवाइस किसी भी सर्किट में कोई भी कम्पोनेट का करेंट वोल्टेज और रेजिस्टेंस मापने के लिए बहुत उपयोगी है । इसकी सहायता से किसी भी सर्किट में वोल्टेज करेंट और रजिस्टेंस  का पता लगा सकते है वोल्ट – ओम मीटर को मल्टीमीटर भी कहते है । पहले एनलॉन्ग का प्रयोग किया जाता है, किन्तु आजकल कल डिजिटल मल्टीमीटर प्रचलन में है । पहले मल्टीमीटर का आविष्कार ब्रिटिश पोस्ट ओफिस इंजिनियर डोनाल्ड मैकएडी द्वारा किया गया था । 1920 के दशक के दौरान बनाये गए इस मल्टीमीटर का आविष्कार रेडिओ रिसीवर के रूप में किया गया था ।

मल्टीमीटर एक प्रकार का प्रयोगशाली यंत्र है जो विभिन्न विधियों में विद्युत मापन करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह यंत्र वोल्टेज (voltage), विद्युत धारा (current), और आवृत्ति (frequency) जैसी विभिन्न पैरामीटर्स को माप सकता है। इसके अलावा, कुछ मल्टीमीटर तापमान, आधुनिकता, और आधारित युक्तियों के साथ विभिन्न परिमाणों की मापदंडों को भी माप सकते हैं।

 

  • हाइग्रोमीटर  ( hygrometer  )

हाइग्रोमीटर ( आद्रतामापी ) द्वारा वायुमंडल की आद्रता मापी जाती है । जल वाष्प को शोषक पदार्थो ( सल्फुरिक अम्ल, कैल्सियम क्लोराइड, फोसफोरस पेंटाऑक्साइड, साधारण नमक आदि ) का उपयोग करके रसायनिक आर्दतामापी बनाये जाते है, जिनके द्वारा वायु के एक निश्चित आयतन में विद्मान जलवाष्प की मात्रा ज्ञात की जाती है । अन्य आर्दतामापियों में डाईन , डेनियल या रेनो हाइग्रोमीटर तथा वेट एंड ड्राई बल्ब हाइग्रोमीटर शामिल है । पहले क्रूड हाइग्रोमीटर को 1400 ई. के दौरान ‘लियोनार्डो दा विन्ची’ द्वारा बनाया गया था । 1664 ई. में इटली के ‘फ्रांसिस्को फोली’ द्वारा अधिक व्याहारिक हाइग्रोमीटर बनाया गया था । इसके बाद 1783 ई. में स्विस भौतिकविद व भूगर्भवेत्ता ‘ होरासे बेनेडिक्ट दी सासोर’ द्वारा हाइग्रोमीटर का ईजॉब किया गया ।

हाइग्रोमीटर का प्रमुख उपयोग वायुमंडलीय नमी का पता लगाना है, जो कृषि, मौसम निगरानी, और औद्योगिक उपयोगों के लिए महत्वपूर्ण है। इसका उपयोग जल, उद्यानिकी, संयंत्र प्रजातियों की देखभाल, और अन्य कई क्षेत्रों में किया जाता है जहां आर्द्रता का स्तर महत्वपूर्ण होता है।

हाइग्रोमीटर विभिन्न प्रकार का होता है, जिसमें पारंपरिक बारोमेट्रिक (जैसे आदर्श हाइग्रोमीटर जिसमें बाल विद्युत का प्रयोग किया जाता है) और डिजिटल हाइग्रोमीटर (जो डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं) शामिल हैं।

 

  • सिस्मोग्राफ – Seismograph –

इसे भूंकम्पलेखी भी कहा जाता है । यह भूंकम्प – घातो  का अभिलेखन करने वाला एक विशेष प्रकार का यंत्र है जिसमे घूमने वाले ड्राम  पर एक अनुरेखन पेन द्वारा कम्पन अंकित किया जाता है बहुत से भूंकम्पलेखी इतने संवेदन शील होते है की उनसे हजारों किलोमीटर दूर आने वाले भूंकम्प  तथा उनकी दूरी एवं दिशा भी अंकित की जा सकती है । एक चीनी व्यक्ति चांग हेंग द्वारा 132 ई. में पहला सिस्मोग्राफ बनाया गया था, जबकि आधुनिक समय में जॉन मिल्ने ने वर्ष 1880 में पहले सिस्मोग्राफ का आविष्कार किया था । जॉन मिल्ने के साथ इसके निर्माण में जेम्स अल्फ्रेड इविंग और थॉमस ग्रे जैसे वैज्ञानिक भी शामिल थे ।

सिस्मोग्राफ (Seismograph) एक उपकरण है जो भूकंप (earthquake) की गतिशीलता को निरीक्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह यंत्र भूमि के तल पर या उसके निकट इस्थान पर स्थापित किया जाता है और भूकंप के संचार को नापता है। जब भूमि में गतिशीलता होती है, तो सिस्मोग्राफ के संवेदक या सेंसर उस गतिशीलता को धरती के विभिन्न बिंदुओं पर नोट करते हैं।

 

  • टेलीस्कोप -telescope –

टेलीस्कोप को ‘दूरदर्शी’ भिओ कहा जाता है । यह एक प्रकाशीय उपकरण है, जिसका उपयोग दूर स्थित वस्तुओ को देखने के लिए किया जाता है । टेलीस्कोप साधारणतया उस प्रकाशील तंत्र को कहते है, जिससे देखने पर दूर की वस्तुए बड़े आकार की और स्पष्ट दिखी देती है । दूरवर्ती वस्तुओ का ज्ञान प्राप्त करने के लिए वर्तमान में ‘रेडिवो टेलीस्कोप’  का प्रयोग किया जाता है । एस्ट्रोनॉमी और एस्ट्रोफिजिक्स के विकास में टेलीस्कोप का महत्वपूर्ण योगदान है । टेलीस्कोप का सर्वप्रथम निर्माण 1607 ई. के लगभग हॉलैंड के हैंस लिपरशे नामक व्यक्ति द्वारा किया गया था । इसके बाद क्रमशः गैलिलियों, केपलर, हाइगेन्स, ब्रैडले, ग्रेगरी, और न्यूटन आदि ने टेलिस्कोप का व्यवस्थित यंत्र के रूप में विकास किया।

टेलीस्कोप एक यंत्र है जो दूरस्थ वस्तुओं को देखने और अध्ययन करने में सहायक होता है। यह उपकरण दूरस्थ वस्तुओं की दृश्य को बड़े स्थान से देखने में मदद करता है, जो आमतौर पर अंतरिक्ष, सितारे, ग्रहों, तारामंडल, और अन्य आकाशीय वस्तुओं के अध्ययन में उपयोग किया जाता है।

 

  • ब्रैथलाइजर -Breathalyzer

यह एक ऐसा डिवाइस है जिसका उपयोग एक श्वस सैम्पल के द्वारा रक्त में एल्कोहॉल की मात्रा ज्ञात करने के लिए किया जाता है । ब्रैथलाइजर एक ब्रैंड नेम में एल्कोहॉल के स्तर की जांच करने वाली यक्ति को दिया गया है । ये एक अमेरकी पुलिस ऑफिसर और अविष्कारक थे ।  ब्रैथलाइजर एक पोर्टेबल डिवाइस है, जिसकी सहायता से यह निर्धारित किया जा सकता है की व्यक्ति क़ानूनी रूप से नशे में है या नहीं । यह निकाली गई एल्कोहॉल वाष्प के अनुपात को मापता है । यह अनुपात रक्त में एल्कोहॉल की मात्रा को दर्शाता है।

ब्रेथलाइजर (Breathalyzer) एक प्रकार का प्रयोगशाली यंत्र है जो शराब की मात्रा को श्वसन से मापता है। यह उपकरण पुलिस अधिकारियों द्वारा शराबी ड्राइवरों की जांच के लिए उपयोग किया जाता है।

ब्रेथलाइजर का उपयोग कारणों की जांच के लिए किया जाता है, जैसे कि गाड़ी चलाने के दौरान नशे में लेना। यह यंत्र शराब की मात्रा को उपयुक्त इलेक्ट्रॉनिक संवेदनशीलता के माध्यम से मापता है, जो श्वसन से लिया गया नमुना का विश्लेषण करके होता है।

 

 

  • ओम – मीटर – ohm meter

यह एक वैद्युत उपकरण, जो प्रतिरोध मापने के काम आता है । इसे ‘ओममापी’ भी कहा जाता है । वे ओममापी जो अत्यंत काम प्रतिरोध को मापने के हिसाब से डिजाइन किये गए होते है उन्हें  ‘माइक्रो ओममापी’ कहते है । इसी प्रकार बहुत अधिक प्रतिरोध के मापन के लिए ‘मेगोममापी’ का उपयोग किया जाता है । ओममीटर के आविष्कार का श्रेय विलियम थॉमसन को दिया जाता है, जिन्होंने वर्ष 1861 में इसका आविष्कार किया था । रेजिटेन्स मापने की इकाई ओम होती है इसलिए इसका नाम ‘ओम मीटर’ रखा गया ।

ओहममीटर का उपयोग विभिन्न विद्युतीय उपकरणों, जैसे कि पैराम्परिक बिजलीय उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, और इलेक्ट्रिकल सर्किट्स की मरम्मत में, विद्युत प्रतिरोध की मात्रा को निर्धारित करने के लिए किया जाता है।

इसके अलावा, ओहममीटर भविष्यवाणी, औद्योगिक उपयोग, और वैज्ञानिक अनुसंधानों में भी उपयोग किया जाता है। यह उपकरण विद्युत प्रतिरोध की निर्धारित मान को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

 

  • थर्मामीटर – Thermometer 

थर्मामीटर को ‘तापमापी’ कहते है । यह ताप या उष्मा की माप के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला यंत्र है । आम तौर पर यह एक काच की नाली के रूप में होता है, जिस पर की तापक्रम के मान अनकित्त होते है । तापमान की माप के लिए प्रयुक्त प्रणाली के अनुसार थर्मामीटर कई प्रकार के होते है, जिनमे सेल्सियस, फारेनहाइट और रियूमर थर्मामीटर अधिक महत्वपूर्ण है । अधिक प्रयोग सेल्सियस और फारेनहाइट थर्मामीटर का होता है । 16 वी एवं 17 वी शताब्दी के अनुसार थर्मामीटर का आविष्कार गैलिलियों गैलिली डोरा किया गया था, जो इटली के बहुज्ञ व्यक्ति थे । इनके आलावा एक अन्य इटैलियन आविष्कार सैंटोरियों को भी इसको  ईजाद करने का श्रेय दिया जाता है ।

थर्मामीटर के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनमें डिजिटल थर्मामीटर, मर्क्युरी थर्मामीटर, इंफ्रारेड थर्मामीटर, और कामगार थर्मामीटर शामिल हैं।

थर्मामीटर का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि मौसम निगरानी, रसोई, उद्योग, चिकित्सा, और वैज्ञानिक अनुसंधान में। यह उपकरण तापमान को मापकर उपयोगकर्ताओं को आवश्यक सूचना प्रदान करने में मदद करता है।

 

  • वोल्ट्मीटर -Voltmeter

यह एक मापन यंत्र है इसका प्रयोग किसी परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओ के बीच विभवान्तर को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है । वोल्टमीटर  में दो टर्मिनल होते है । जिन दो बिन्दुओ के बीच विभवान्तर को मापना होता है उन पर इन टर्मिनल को जोड़ दिया जाता है । वोल्ट्मीटर के दोनों सिरों के बीच प्रतिरोध बहुत अधिक होना चाहिए । वर्ष 1899 में डेनमार्क के भौतिकविद हैंस क्रिश्चयन अवरेस्टेड द्वारा वोल्टमीटर का आविष्कार किया गया था । व्याहारिक रूप से वोल्ट्मीटर एमीटर की तरह ही काम करते है जो वोल्टेज को मापने के साथ, विद्युत धारा  और प्रतिरोध को भी मापते है ।

वोल्टमीटर (Voltmeter) एक यंत्र है जो विद्युत विभाजन (voltage) को मापता है। यह उपकरण विद्युत चालकों, और संचालकों की विद्युत वैशिष्ट्य को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।

वोल्टमीटर का प्रमुख उपयोग विभिन्न विधियों में विद्युतीय प्रतिरोध, संचालन, और प्रवाह की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग विद्युत प्रणालियों, बिजली की उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, और अन्य विद्युतीय उपकरणों की मरम्मत और परीक्षण के दौरान किया जाता है।

 

  • बाइनोकुलर्स – Binoculars –

बाइनोकुलर्स ( द्विनेत्री ) को फील्ड ग्लास या द्विनेत्री दूरदर्शी के आलावा आमतौर पर दूरबीन भी कहा जाता है यह समान अथवा दर्पण समितियों वाले दूरदर्शी युग्म है,  जो साथ – साथ लगे होते है तथा एक दिशा में देखने के लिए परिशुद्धता से लगाए जाते है । टेलीस्कोप ( मोनोकुलर ) के विपरीत दूरबीन उपयोगकर्ता को त्रि – आयामी छवि प्रस्तुत कराती, अपेक्षाकृत पास की वस्तुए को देखते समय दर्शक की आँखों के लिए थोड़े से अलग दृष्टिकोण से छवियाँ प्रस्तुत है, जो मिलकर गहराई का प्रभाव प्रस्तुत करती है । बाइनोकुलर टेलीस्कोप का आविष्कार वर्ष 1825 में ‘जेपी लेमेयर’ द्वारा किया गया था । जबकि सबसे पहला द्विनेत्री दूरदर्शी 1608 ई. में हॉलैंड के वैज्ञानिक जोहान लेपरहे द्वारा तैयार किया था ।

बाइनोकुलर्स का प्रमुख उपयोग प्राकृतिक दृश्यों, विभिन्न प्रकार के आकाशीय वस्तुओं, जंगली जीवन, पर्वतीय क्षेत्रों, और वन्यजीवों के देखने में किया जाता है। इसके अलावा, बाइनोकुलर्स को पर्यटन, शिकार, उपयोगिता, और आकाशगंगा अध्ययन में भी उपयोग किया जाता है।

 

  • साइक्लोट्रॉन – Cyclotron –
    साइक्लोट्रॉन  एक कण त्वरक है, जो वर्तमानme तवारान्तरण( ट्रांसम्यूटेशन) तकनीक के लिए सबसे प्रबल उपकरण है यह उच्च ऊर्जा के ड्यूट्रॉन, प्रोटॉन, एल्फा कण एवं न्यूट्रॉन की प्राप्ति के लिए एक प्रबल साधन है । नाभिकीय तत्वांतरण के अध्यन के शैक्षिक महत्त्व के अतिरिक्त साइक्लोट्रॉन रेडिओ सोडियम, रेडिओ फॉस्फोरस, रेडिवो आयरन एवं रेडिओएक्टिव तत्वों के व्यापारिक निर्माण के लिए उपयोग में लाया गया है साइक्लोट्रॉन  का आविष्कार वर्ष 1932 में अमेरिकी परमाणु वैज्ञानिक अर्नेष्ट औरलैंड लॉरेंस द्वारा किया गया था ।  साइक्लोट्रॉन  के अविष्कार के लिए प्रो. लॉरेंस को वर्ष 1932 में नोबेल पुरस्कार दिया गया ।

साइक्लोट्रॉन (Cyclotron) एक प्रकार का वैज्ञानिक यंत्र है जो अणुओं या अन्य चार्ज्ड पार्टिकल्स को उच्च ऊर्जा परिवर्तित करता है। यह यंत्र परिसर में एक चुकाने चालक अक्ष के चारों ओर घुमता है और धारा चालित चार्ज्ड पार्टिकल्स को अचानक ऊर्जा के चक्राकार रास्ते पर बढ़ाता है। इस तरीके से, साइक्लोट्रॉन प्रतिरोधी पार्टिकल्स को चार्ज करने के लिए उच्च ऊर्जा विज्ञान के क्षेत्र में उपयोगी होता है।

 

 

  • एमीटर ( ammeter ) – : 

एमीटर एक ऐसी व्यक्ति है, जिसका उपयोग किसी भी परिपथ में प्रभावित धारा का मान ज्ञात करने या मापने के लिए होता है । यह एक अत्यंत कम प्रतिरोध वाले व्यक्ति है तथा इसकी सहायता से धारा मापन करने के लिए इसको  परिपथ में सदैव श्रेणींक्रम में लगाया जाता है । बहुत कम मात्रा वाली धाराओं को मापने के लिए उपयुक्त व्यक्तियों को मिलिएमीटर (  milliammeter  ) या माइक्रोएमीटर ( microameeter ) कहा जाता है । वर्ष 1884 में ऑस्टेलिया के इंजीनियर फ्रेडरिक ड्राक्स्लर द्वारा मूविंग – आयरन मीटर नामक युक्ति आगे चलकर एमीटर के रूप में परिवर्तित होती चली गई । अमेरिकी भौतिकविद विलियम स्टैनली जूनियर का इसके आविष्कार में विशेष योगदान रहा ।

एमीटर (Ammeter) एक विद्युत यंत्र है जो विद्युत धारा (current) को मापता है। यह यंत्र विभिन्न विधियों में विद्युतीय उपकरणों के प्रवाह को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।

एमीटर का प्रमुख उपयोग विद्युत चालकों, संचालकों, और उपकरणों की विद्युत धारा को मापने में होता है। इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में विद्युत औद्योगिकता, विज्ञान, और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में किया जाता है।

 

  • एनिमॉमीटर ( anemometer ) – 

इसे ‘पवन वेग मापी’ भी कहते है यह हवा का वेग मापने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला यंत्र है मौसमविज्ञान के अध्यन में इस यंत्र का विशेष महत्त्व है । सबसे अधिक प्रचलित पवन वेग मापी ‘रॉबिन्स कप एनिमॉमीटर है, जबकि हवा के वेग के सतत अभिलेख के लिए ‘ डाइन प्रेशर ट्यूब एनिमॉमीटर’ सर्वोत्तम है । विमान चालकों को उड़ान के समय पवन का वेग ज्ञात करने के लिए ‘ डिस्टेंट रीडिंग एनिमॉमीटर’ का प्रयोग किया जाता है । 1450 ई. में इटली के आविष्कार ‘लियोन बातिस्ता एल्बर्टी’ द्वारा पहले यांत्रिक पवन वेग मापी का आविष्कार किया गया था । 1664 ई  में अंग्रेज दार्शनिक ‘ रॉबर्ट हुक ‘ द्वारा इसका फिर से आविष्कार किया गया ।

एनिमॉमीटर के कई प्रकार होते हैं, जिनमें प्रतिद्वंद्वी, उच्चायमापी, और होट-वायर एनिमॉमीटर शामिल हैं। प्रतिद्वंद्वी एनिमॉमीटर वायु गति को ग्रहण करने के लिए चक्रीय चालन का उपयोग करता है, जबकि उच्चायमापी एनिमॉमीटर उच्च ऊंचाई पर हवा की गति को मापता है। होट-वायर एनिमॉमीटर हवा की गति को हॉट-वायर अनुसंधान तकनीक का उपयोग करके मापता है।

 

  • ऑडिओमीटर –  Audiometer – :

यह श्रवण की संवेदनशीलता या तीक्षणता को मापने के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण है इसके द्वारा सुनने की शक्ति का मूल्याङ्कन किया जा  सकता है और पैमाने ( स्केल ) पर दर्ज किया जा सकता है ऑडियोमीटर का प्रयोग ईएनटी किल्निकस और ऑडियोलॉजी केंद्रों में मानक उपकरण के रूप में किया जाता है ऑडिओलॉजी केंद्रों में मानक उपकरण के रूप में किया जाता है।  ऑडियोमीटर के आविष्कार का श्रेय महान ब्रिटिश वैज्ञानिक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल को दिया जाता है।  अमेरिकन मनोवैज्ञानिक द्वारा 1899 में ऑडियोमीटर के पहले ‘आधुनिक’ संस्करण विकसित किया जाता था।

ऑडिओमीटर ध्वनि प्रसार और प्राप्ति की तकनीकों का उपयोग करके विभिन्न श्रवण स्तरों की परीक्षा करता है। यह ध्वनि के विभिन्न तरंगदैर्घ्यों और ध्वनि के प्रत्युत्तर की तुलना करके व्यक्ति की श्रवण सीमा को निर्धारित करने में मदद करता है।

ऑडिओमीटर का उपयोग आयुर्विज्ञानिक, नेत्र-कान-नाक विशेषज्ञों और श्रवण विशेषज्ञों द्वारा रुग्णों के श्रवण क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है,

 

  • क्रोनोमीटर – Chronometer –

यह एक विशेष प्रकार की घडी होती है।  इसे ‘ कालमापी’ भी कहते है।  यह बहुत शुध्य समय बताती है।  इसका समय ग्रीनविच के स्थानीय समय से मिलाकर रखा जा सकता है जिससे जहाज पर ग्रीनविच समय तुरंत जाना जा सकता है।  इससे सेक्सटैण्ड से सूर्य की स्थिति नापकर जहाज जिस स्थान पर है वहाँ का स्थानीय समय ज्ञात किया जा सकता है। स्थानीय समय और ग्रीनविच समय के अंतर से से देशान्तर की गणना की जा सकती है।  क्रोनोमीटर बनाने का पहला प्रयास विख्यात वैज्ञानिक क्रिश्चिचयन हाइगेन्स द्वारा किया गया था, परन्तु क्रोनोमीटर के आविष्कार  श्रेय अंग्रेज आविष्कार जॉन हैरिसन को जाता है जिसने 1729-60 ई. के मध्य चार क्रोनोमीटर बनाये।  1765 ई. में पियरे लरुआ ( इटली ) द्वारा तथा 1785 ई. में जॉन अर्नाल्ड व टॉमस अर्नशा ( ब्रिटेन ) द्वारा नर्मित क्रोनोमीटर आधुनिक यंत्रों से  काफी मिलते – जुलते थे।

क्रोनोमीटर अक्सर नौविक यात्रियों या अन्य नौकायन वाहनों के लिए उपयोग किया जाता है, जहां विशेष ध्यान और अत्यंत सटीक समय महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा, विज्ञान और अनुसंधान क्षेत्रों में भी क्रोनोमीटर का उपयोग किया जाता है, जहां घटनाओं के लिए सटीक समय की आवश्यकता होती है।

  • कैलोरीमीटर –    Calorimeter –

इसे प्रायः ‘उष्मामापी’  है।  यह  ऊष्मागतिकी में सहायक एक उपकरण है, जिसका उपयोग रासायनिक अभिक्रियाओ की उष्मा मापने या भौतिक परिवर्तनों की उष्मा मापने या ऊष्मा धारिता मापने के लिए किया है। डिफ्रेंशियल स्कैनिंग किलोमीटर, आइसोथर्मल माइक्रोकैलोरीमीटर तथा त्वरित दर कैलोरीमीटर आदि प्रमुख उष्मामापी है विश्व के पहले कैलोमीटर का आविष्कार 1782 – 83 ई. में फ़्रांस के रसायनशास्त्री एंटोनी लैवोसिएर और फ़्रांस के ही विद्वान पियरे – सिमोन लाप्लेस द्वारा कियता गया था कैलोमीटर को आधुनिक स्वरूप फ़्रांस के रसायनशास्त्री यूजीन बर्थेलो द्वारा प्रदान किया गया।

कैलोरीमीटर का मुख्य उपयोग उदाहरण के रूप में, रासायनिक प्रतिक्रियाओं में ऊष्मा परिवर्तन को मापने में होता है, जैसे कि अग्निशामक या अग्निस्फुल्लक। इसके अलावा, खाद्य उद्योग में खाद्य पदार्थों के ऊष्मा मान को मापने के लिए भी कैलोरीमीटर का उपयोग किया जाता है।

 

  • इलेक्ट्रोमीटर – electrometer –

इलेक्ट्रोमीटर को ‘विद्युतमापी’ भी कहते है।  यह विद्धुत आवेश या विभवान्तर मापने वाला विधुत उपकरण है।  वर्तमान में अट्रेक्टेड डिस्क इलेक्ट्रॉनिक इलेक्ट्रोमीटर प्रचलन में है।  आधुनिक इलेक्ट्रोमीटर वरवात नलिका पर या त्रास अवस्था इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों पर आधारित होते है और 1 फेम्टो एम्पियर तक की धारा में भी मापने में सक्षम है।  इल्क्ट्रोमीटर से दो आविष्ट चालकों के मध्य आकर्षण बल के मापन द्वारा आवेश, विभव इत्यादि का मापन  होता है।  इल्क्ट्रोमीटर के आविष्कार श्रेय अंग्रेज भौतिकविद विलियम स्नो  दिया जाता है।  बाद में लार्ड केल्विन आयरलैण्ड के प्रसिद्ध भौतिकविद थे।

इलेक्ट्रोमीटर का प्रमुख उपयोग विभिन्न विज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधानों में होता है, जहां बहुत ही छोटे विद्युतीय चार्ज को मापने की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग प्राय: विभिन्न प्रकार के अणुशक्ति और अणुबल्ब के प्रयोगों में किया जाता है, जिसमें विद्युत चार्ज को न्यूनतम स्तर पर मापने की आवश्यकता होती है।

इलेक्ट्रोमीटर के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनमें कैपेसिटेंस टाइप, गैल्वानोमीटर और रेसिस्टेन्स टाइप शामिल हैं

 

  • गैल्वेनोमीटर – Galvanometer –

गैल्वेनोमीटर को ‘धारामापी’  कहते है।  यह एक प्रकार का एमीटर ही है जिसका प्रयोग किसी परिपथ में धारा की उपस्थिति  करने के लिए किया।   स्पर्शज्या धारामापी के समान्तर समुचित मान वाले छोटे प्रतिरोध ( शंट ) लगाकर इसे एमीटर की तरह प्रयोग किया जाता है।  सबसे पहले गैल्वेनोमीटर  आविष्कार जर्मन रसायनशास्त्री जोहन शिवगर द्वारा वर्ष 1820 में किया गया था।  इसके विकास  में फ़्रांस  भौतिकविद आंद्रे – मारी एम्पियर द्वारा भी योगदान  दिया गया था।  वर्तमान में धारामापी तंत्र का प्रयोग स्थिति – निर्धारण और नियंत्रण प्रणालियों में किया जा रहा है।

गैल्वेनोमीटर (Galvanometer) एक प्रकार का विद्युत यंत्र है जो छोटे विद्युत विद्युत धाराओं को मापने में उपयोग किया जाता है। यह यंत्र विद्युत चार्ज के प्रवाह को प्रदर्शित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

गैल्वेनोमीटर का प्रमुख उपयोग विद्युत धाराओं को मापने, प्रवाह दिशा को निर्धारित करने, और संदेश या उपयोगिता के लिए विद्युत चार्ज के बदलाव को देखने में होता है।

 

  • लैक्टोमीटर – lactometer

लैक्टोमीटर दूध की शुध्दता मापने वाला उपकरण है इस वैज्ञानिक यंत्र का आविष्कार लीवरपूल ( इंग्लैंड ) के डिवाइस द्वारा किया गया था।  यह शीशे से बना एक छोटा – यंत्र है। इसके जरिये दूध  के घनत्व के आधार पर दूध की शुद्धता और अशुद्धता का निर्धारण किया जाता है इस यंत्र के जरिये दूध में पानी मिलाया गया है, या नहीं, इसका पता आसानी से लगाया  जा सकता है। लैक्टोमीटर आर्किंडीज के सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है।  यह हाइड्रोमीटर ( प्रवघनत्वमापी ) का ही एक प्रकार है।  इसकी रचना इसकी इस सिद्धांत पर आधारित है की द्रव में अंशतः डूबे हुए और संतुलित पिंड का भार उतने द्रव के भार के बराबर है जो पिंड का डूबा हुआ भाग विस्थापित करता है ।

लैक्टोमीटर (Lactometer) एक यंत्र है जो दूध में उपस्थित द्रव्यमान और उपस्थित लक्षित घटकों को मापता है। इसका उपयोग दूध में पानी की मात्रा की जाँच के लिए किया जाता है।

लैक्टोमीटर का प्रमुख उपयोग दूध की गुणवत्ता की जाँच के लिए किया जाता है। यह यंत्र दूध में पानी की मात्रा को निर्धारित करने में मदद करता है, जिससे दूध की पारंपरिक गुणवत्ता और ऊतकों का सही मात्रा पाया जा सकता है।

 

  • ऑसिलोस्कोप – Oscilloscope –

यह ऐसा इलेक्ट्रॉनिक  उपकरण है जो किसी विभवान्तर को समय के सापेक्ष एक ग्राफ के रूप में प्रदर्शित करता है । यह मुख्यतः दो प्रकार ( कैथोड रे ट्यूब ऑसिलोस्कोप और डिजिटल स्टोरेज ऑसिलोस्कोप ) के होते है, यह इलेक्ट्रॉनिकी में प्रयुक्त होने वाले सर्वाधिक उपयोगी उपकरणों में से एक है । इसे ‘दोलन दर्शी’ भी कहा जाता है । जर्मनी के आविष्कार, भौतिकविद और भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता ‘ कार्ल फर्डिनांड ब्रान’ द्वारा वर्ष 1897 में कैथोड रे ट्यूब ( सीआरटी )  ऑसिलोस्कोप का आविष्कार किया गया था ।

ऑसिलोस्कोप (Oscilloscope) एक विद्युत यंत्र है जो विद्युतीय चालनों को दिखाने और मापने के लिए उपयोग किया जाता है। यह यंत्र विभिन्न प्रकार की विद्युतीय चालनों को एक स्क्रीन पर ग्राफिकल रूप में प्रदर्शित करता है, जिससे उपयोगकर्ता चालन की विभिन्न विशेषताओं को देख सकता है।

ऑसिलोस्कोप का प्रमुख उपयोग विभिन्न प्रकार की विद्युतीय चालनों को मापने और विश्लेषण करने में होता है। इसे इलेक्ट्रॉनिक्स, अद्यतनीकरण, अनुकूल रेडार प्रणाली, ध्वनि प्रक्रियाएँ, संचार प्रणालियों, विज्ञानीय अनुसंधान और शिक्षण में उपयोग किया जाता है।

 

  • फैदोमीटर – Fathometer –

फैदोमीटर यंत्र का उपयोग महासागरीय गहराई मापने के लिए किया जाता है । यह यंत्र जल में होकर जाने वाली ध्वनि तरंगो से ज्ञात वेग का उपयोग करता है । विश्व के पहले व्यावहारिक फैदोमीटरमीटर का
आविष्कार अमेरिकी इंजीनियर, आविष्कार और भौतिविड़ हर्बट ग्रोव डोर्सी द्वारा किया गया था , जो 1930 के दशक के दौरान यूनाइटेड स्टेटस कोस्ट एन्ड जिओडेटिक सर्वे रेडिओसोनिक लैबोरेटरी के मुख्य इंजीनियर थे । वर्तमान में प्रयोग में लाये जा रहे ‘फिश फाइंडर’ को फैदोमीटर का एक रूप कहा जाता है । फिश फाइंडर द्वारा सक्रिय सोनार उपकरणों का प्रयोग कर नेविगेशन तथा सुरक्षित रूप से पानी की गहराई मापी जाती है ।

फैदोमीटर का काम यह जानने में मदद करना होता है कि समुद्र की किनारे से कितनी दूर और समुद्र की गहराई कितनी है। यह यंत्र आधुनिक सॉनार (sonar) प्रणालियों का एक प्रकार है जो जलबिन्दु से उत्पन्न आवाज के प्रतिबिम्ब को पकड़ता है और उसकी गहराई का मापन करता है।

 

  • इलेक्ट्रोस्कोप – electroscope –

इलेक्ट्रोस्कोप को विद्युतदर्शी भी कहते है । यह सबसे प्राचीन विद्युत उपकरण मन जाता है । इसका प्रयोग विद्युत आवेश के संसूचन और मापन में होता है । 1600 ई. के आसपास  ब्रिटिश फिजिशियन विलियम गिल्बर्ट द्वारा पहला साईंटिफिक इलेक्ट्रोस्कोप बनाया गया । 1754 ई. में ब्रिटिश आविष्कार जॉन कैंटल द्वारा एक पीठ – बॉल इलेक्ट्रोस्कोप का ईजाद किया गया । 1787 ई. में ब्रिटिश वैज्ञानिक इब्राहिम बेनेट द्वारा गोल्ड तीफ इलेक्ट्रोस्कोप बनाया गया, जिसका प्रयोग आज तक होता है, साधारण गोल्ड लीफ इल्क्ट्रोस्कोप के धारिता बहुत कम होती है, इस कारण यह विभव के प्रति कम सुग्राही होता है । ऑस्टेलिया  के वैज्ञानिक विक्टर हेस  द्वारा इलेक्ट्रोस्कोप का प्रयोग कॉस्मिक किरणों की खोज के दौरान किया गया था । 

इलेक्ट्रोस्कोप का मुख्य उपयोग यह देखने में होता है कि किसी वस्तु या प्राणी में कोई विद्युत चार्ज है या नहीं। जब इलेक्ट्रोस्कोप के परियोजनक चार्ज के साथ संपर्क में आते हैं, तो वह चार्ज को लेकर भर जाते हैं और उत्तेजित हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप परियोजनक फिर से अपनी प्रारंभिक स्थिति में लौटते हैं, जिसे आंतरिक चार्ज के उपस्थिति के रूप में प्रकट किया जाता है।

 

  • एण्डोस्कोप –  endoscope

यह एक चिकित्सीय उपकरण है । इसे ‘अंतदर्शी’ भी कहते कहते है । एण्डोस्कोप की सहायता से शरीर के किसी अंग ( जैसे आंत्र ) के अंदर देखा जा सकता है की कहा पर कैसी स्थिति है । अन्य चिकित्सीय चित्रण उपकरणों के विपरीत एण्डोस्कोप को सीधे ही शरीर के अंग में डाला जाता है । तथा शरीर के खोखले अंग अथवा छिद्रों के अंदर की जांच की जाती है । पहले एण्डोस्कोप का आविष्कार वर्ष 1806 में जर्मन वैज्ञानिक फिलिप बोजिनी द्वारा मानव शरीर की नालियों और गर्तो की जांच के लिए उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए, ‘ लिकलीटर’ के विकास के साथ हुआ था । वर्ष 1822 में अमेरकी सैन्य शल्य – चिकित्सक विलियम ब्यूमॉन्ट द्वारा पहला एण्डोस्कोप विकसित किया गया ।

 

  • कइमोंग्राफ  – Kymograph –

कइमोंग्राफ को रक्तचाप  मापक यंत्र या स्वाभिलेखि भी कहा जाता है । यह एक उपकरण है, जो धमनीय रक्चाप में परिवर्तन को रिकॉर्ड करता है, धमनियों और शिराओं के द्वारा बहने वाले रक्त की दर का मापन करता है और रक्त को गैसों को अलग करने के लिए मरक्यूरियल ब्लड गैस पम्प के रूप में कार्य करता है । इस उपकरण ने रक्त शुध्यीकरण की प्रक्रिया में ऑक्सीजन और अन्य  गैसों की भूमिका को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । कइमोंग्राफ का आविष्कार वर्ष 1847 में जर्मन वैज्ञानिक कार्ल फ्रेडरिक विल्हेम लुडविंग द्वारा किया गया था । लुडविंग को ‘कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम’ के अध्यन के लिए जाना जाता है । आमतौर पर कइमोंग्राफ का उपयोग ऊतक निर्माण पर ‘जिनिबायॉटिक्स’ के प्रभाव के अध्यन हेतु किया गया है ।

काइमोग्राफ में एक घूर्णित ड्रम होता है जिस पर कागज लिपटा होता है। इस कागज पर एक कलम या स्टाइलस होता है, जो शरीर की माप से जुड़े परिवर्तनों को ड्रम के घूर्णन के साथ समय के अनुसार कागज पर अंकित करता है। इस तरह, काइमोग्राफ समय के साथ विभिन्न मापों के पैटर्न को प्रदर्शित करता है

 

  • माइक्रोस्कोप -Microscope –

माइक्रोस्कोप को ‘सुष्मदर्शी’ भी कहते है । यह एक यंत्र है , जिसकी सहायता से आँख से न दिखाई देने वाली वस्तुओ या रचनाओं का अवलोकन करने के लिए सुष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है सामान्यता 0.1 मिमी से छोटी वस्तु को हमारे नेत्र नहीं देख पाते अतः छोटी वस्तुओ को देखने में ‘सुष्मदर्शी’ सहायक होती है । सबसे पहले नीदरलैंडस में 1600 ई. के आसपास जकारियास जेनसन द्वारा पहला कम्पाउण्ड माइक्रोस्कोप ( संयुक्त सुष्मदर्शी )  बनाया गया था । जीव विज्ञान की की प्रयोगशाला में प्रायः संयुक्त सुष्मदर्शी का उपयोग होता है ।

माइक्रोस्कोप में आमतौर पर लेंस या ऑप्टिकल सिस्टम होता है, जो छोटे वस्तुओं को बड़ा करके दिखाता है। इसके अलावा, माइक्रोस्कोप में प्रकाश व्यवस्था भी होती है, जो वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखने के लिए आवश्यक प्रकाश प्रदान करती है। विभिन्न प्रकार के माइक्रोस्कोप होते हैं, जैसे कि ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप, और फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोप, जिनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

 

  • पेरिस्कोप -periscope –

पेरिस्कोप को ‘परिदर्शी’ भी कहते है । यह एक प्रकाशिक यंत्र है, जिसकी द्वारा प्रेक्षक छिपा रहकर भी अपने चारों ओर के वातावरण को देख सकता है । इसका उपयोग पनडुब्बी, युद्धपोत, क्रूजर, युद्धक्षेत्र में छिपे सैनिको द्वारा एवं तोपखाने के तोपची अफसर द्वारा लक्ष्य को देखने ओर शत्रु की गतिविधि जानने के लिए होता है । प्रथम विश्व युद्ध के समय इसका प्रयोग हुआ था । कुछ प्रकार की बंदूकों ओर तोपधारी गाड़ियों में भी पेरिस्कोप का प्रयोग होता है । वर्ष 1854 में फ़्रांसिसी खोजकर्ता, ‘एडमे हिप्पोलाइट मारी – देवी’ द्वारा पहले नेवल पेरिस्कोप का आविष्कार किया गया था ।

पेरिस्कोप का उपयोग मुख्य रूप से पनडुब्बियों में किया जाता है, जिससे पनडुब्बी के अंदर बैठे व्यक्ति पानी की सतह के ऊपर के दृश्य को देख सकते हैं। इसके अलावा, पेरिस्कोप का उपयोग सैन्य वाहनों, टैंक, और कभी-कभी भवनों में भी किया जाता है, ताकि अवरोधों के पीछे की दृष्टि प्राप्त की जा सके।

 

  • क्रेस्कोग्राफ  –  crescograph

क्रेस्कोग्राफ पौधो की वृद्धि को मापने वाला एक यंत्र है इसका विकास भारत के वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस द्वारा वर्ष 1918 में किया गया था । जेसी बोस द्वारा करे स्कोग्राफ से विभिन्न उत्तेजको के प्रति पौधो की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया तथा यह सिद्ध किया की  वनस्पतियो ओर पशुओ के ऊतकों में काफी समानता है । ये भारत के पहले वैज्ञानिक शोध्कर्ता थे, जिन्होंने एक अमेरकी पेंटेंट प्राप्त किया था । उन्हें ‘रेडिओ’ विज्ञान का जनक’ माना जाता है उनको रेडिओ ओर सूष्म तरंगो की प्रकाशिकी पर कार्य करने के लिए भी जाना जाता है ।

यह उपकरण पौधों की सूक्ष्म वृद्धि जैसे कि तना, पत्तियों, या जड़ों की लंबाई में वृद्धि को मापता है।

क्रेस्कोग्राफ पौधों की वृद्धि की दर को समझने में मदद करता है, जिससे वैज्ञानिकों को यह पता चलता है कि विभिन्न परिस्थितियों जैसे प्रकाश, तापमान, या नमी का पौधों की वृद्धि पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस उपकरण का उपयोग पौधों के विकास और उनकी भौतिकी को समझने के लिए किया जाता है, जिससे कृषि और पौधों के विज्ञान में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

 

  • माइक्रोफोन –  microphone –

माइक्रोफोन को बोलचाल की भाषा में ‘ माइक’ कहा जाता है । यह एक ट्रांसड्यूसर या संवेदक होता हैं , जो ध्वनि को विद्युतीय संकेत में रूपांतरित करता है । माइक्रोफोन्स का प्रयोग का प्रयोग टेलीफ़ोन, टेपरिकॉर्डर, कराओके प्रणालियाँ, श्रावण – सहायता यंत्रों, चलचित्रों के निर्माण, सजीव तथा रिकॉर्ड की गई श्रव इंजीनरिंग, एफआरएस रेडिओ, मेगाफोन, रेडिओ व टेलीविजन प्रसारण ओर कम्प्यूटर में आवाज रिकार्ड करने, स्वर की पहचान  करने, वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल तथा कुछ गैर – ध्वनिक उद्देश्यों के रूप में किया जाता है ।

वर्तमान में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश माइक्रोफोन यांत्रिक कम्पन से एक विद्युतीय आवेश अंकित उत्पन्न करने के लिए एक विद्युत चुंबकीय प्रवर्तन, धारिता परिवर्तन, पाइजोइलेक्ट्रिक जनरेशन या प्रकाश अधिमिश्रण का प्रयोग करते है पहले माइक्रोफोन का आविष्कार वर्ष 1876 में अमेरिकी – जर्मन शोधकर्ता एमिली बर्लिनर द्वारा किया गया था ।

 

  • फोनोग्राफ – phonograph –

ध्वनि के अभिलेखन के लिए काम में लिए जाने वाले उपकरण को ‘फोनोग्राफ’ कहते है । वर्तमान में फोनोग्राफ को ग्रामोफोन या रिकार्ड प्लयेर के रूप में भी जाना जाता है । यह यंत्र ध्वनि को अंकित करता है और बजाने पर उसी रूप में प्रकट कर देता है । फोनोग्राफ का आविष्कार वर्ष 1877 में अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन द्वारा किया गया था । फोनोग्राफ एक सुई के दोलनों को वायु में संचारित कर ध्वनि उत्पन्न करता है, सूई एक घूमते हुए रिकार्ड में बने घुमावदार खांचे के सम्पर्क में होती है व्यापक अर्थ में किसी भी ऐसे यंत्र को फोनोग्राफ कहते गई जिससे ध्वनि का अभिलेखन और बाद में पुनरुत्पादन होता है ।

फोनोग्राफ में एक सुई (नीडल) होती है जो ध्वनि तरंगों को रिकॉर्ड करने के लिए सिलेंडर या डिस्क पर कट करती है। जब सुई ध्वनि तरंगों के अनुरूप चलती है, तो यह सतह पर उत्कीर्ण कर देती है। जब रिकॉर्ड की गई ध्वनि को पुन: चलाना होता है, तो सुई इन उत्कीर्णनों को ट्रेस करती है और इसे यांत्रिक रूप से ध्वनि में बदल देती है।

फोनोग्राफ ने ध्वनि रिकॉर्डिंग की दुनिया में क्रांति ला दी और यह शुरुआती रिकॉर्डिंग तकनीक का आधार बना। यह उपकरण बाद में ग्रामोफोन और आधुनिक रिकॉर्ड प्लेयर के रूप में विकसित हुआ, जिसने संगीत और ध्वनि उद्योग को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।

 

  • राडार – Radar –

रडार शब्द ‘ रेडियो डिटेक्शन एन्ड इमेजिंग ‘ का संक्षिप्त रूप है, रडार ऐसा यंत्र है, जिसकी सहायता से रेडियो तरंगो का उपयोग दूर की वस्तुओ का पता लगाने में तथा उनकी स्थिति ( दिशा व दूरी ) ज्ञात करने के लिए किया जाता है । रडार द्वारा आँखों से जितनी दुर दिखाई पड़ सकता है उससे कही अधिक दूरी की चीजों की स्थिति का सही पता लगाया जा सकता है । राडार की सहायता से वायुयान, जलयान, मोटरगाड़ियों आदि गतिमान वस्तुए की दूरी, उचाई, दिशा, चाल आदि का दूर से ही पता चल जाता है इसके अलावा मौसम में परिवर्तनों का भी पता चल जाता है । वर्ष 1886 म रेडिओ तरंगो के आविष्कार जर्मन वैज्ञानिक हेनरिक रुडोल्फ हर्ट्ज द्वारा ठोस वस्तुओ से इन तरंगो का परावर्तन सिध्य किया था, जिसके फलस्वरूप राडार का आविष्कार हुआ ।

राडार की कार्यप्रणाली निम्नलिखित है:

रेडियो तरंगों का उत्सर्जन: राडार एक एंटीना के माध्यम से रेडियो तरंगों को उत्सर्जित करता है, जो वायुमंडल में बाहर भेजी जाती हैं।
प्रतिबिंब: जब ये रेडियो तरंगें किसी वस्तु से टकराती हैं, तो वे वापस राडार की ओर प्रतिबिंबित होती हैं।
सिग्नल की प्राप्ति: राडार एंटीना वापस लौटने वाली रेडियो तरंगों को प्राप्त करता है।
सिग्नल का विश्लेषण: राडार सिस्टम वापस लौटे सिग्नल का विश्लेषण करके वस्तु की दूरी, गति, और दिशा जैसी जानकारी प्राप्त करता है।

 

  • रेन गेज – rain gauge

यह किसी स्थान पर होने वाली वर्षा को मापने के लिए प्रयुक्त होने वाला एक साधारण यंत्र है इसे ‘ वर्ष मापी ‘ भी कहा जाता है । एक साधारण प्रकार के रेन गेज में पीतल  या अन्य धातु का एक बेलन स्टैंड पर सलंग्न होता है जिसके ऊपर एक कीप लगी होती थी । कीप में गिरने वाला वर्ष का जल बेलन के भीतर स्थिति  एक नली में एकत्रित होता है ।

इसका प्रयोग मौसमविज्ञानी बहुत करते  है ।  1662 ई. में ब्रिटेन के क्रिस्टफर रेन द्वारा पहला ‘ टिपिंग बकेट रेन गेंज ‘ टिपिंग बकेट गेज’ विकसित किया गया है । वतमान में कई बार इनका उपयोग में आ रहे है जिनमे ग्रेजुएट सिलेंडर, वेइंग गेज, टिपिंग बकेट गेज तथा भूमिगत पिट कलेक्टर्स शामिल है ।

 

  • रेक्टिफायर –  Rectifier –

रेफ्टीफायर  ऐसी व्यक्ति हैं जो आवर्ती धारा ( ऐसी ) को दिष्ट धारा ( डीसी ) में बदलने का कार्य करती है । इसे ‘ दिस्टकारी’ भी कहा जाता है । रेक्टिफायर बनाने के लिए ठोस अवस्था डायोड, निर्वात – ट्यूब डायोड , मरकरी – आर्क वाल्व, सेलेनियम डायोड, और एससीआर आदि का प्रयोग किया जाता है । प्रायः सभी रेक्टिफायर एक या अधिक डयोड़ो को विशेष क्रम में जोड़कर बनाये जाते है । रेक्टिफायर का आविष्कार वर्ष 1902 में अमेरिकी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और खोजकर्ता ‘ पीटर कूपर हुइट’  द्वारा की गई थी । रेक्टिफायर को उसके काम करने के तरीके के अनुसार मुख्यतः तीन श्रेणियाँ में रखा गया है ।

रेक्टिफायर (Rectifier) एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो वैकल्पिक धारा (AC) को सीधी धारा (DC) में परिवर्तित करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में एक आवश्यक घटक है क्योंकि अधिकांश उपकरण सीधी धारा पर काम करते हैं, जबकि विद्युत ग्रिड से प्राप्त होने वाली धारा वैकल्पिक होती है।

 

  • थर्मोमीटर – Thermometer –

यह किसी यंत्र के तापमान को नियमित बनाये रखने का एक उपकरण है ताकि तंत्र का तापमान एक वांछित निश्चित बिंदु के आसपास बना रहे । इसे ऊष्मातापी या तापस्थायी भी कहते है । थर्मोस्टेट यह कार्य तापक और शीतलक उपकरणों को चालू या बंद, या सही तापमान बनाये रखने के लिए उष्मा हस्तांतरण द्रव के प्रभाव को आवश्यकतानुसार नियमित करके करता है । थर्मोमीटर कई तरह से बनाया जा सकता है और तापमान को मापने के लिए विभिन्न प्रकार के संवेदकों का उपयोग कर सकता है । स्विस मूल के खोजकर्ता एल्बर्ट बुट्ज द्वारा पहला इलेक्ट्रिक थर्मोस्टेट का आविष्कार किया गया था। बुट्ज द्वारा वर्ष 1886 में इसका पेमेंट कराया गया ।

थर्मोमीटर के प्रकार:

पारा थर्मोमीटर: ये पुराने थर्मोमीटर हैं जिनमें एक कांच की ट्यूब में पारा होता है। तापमान बढ़ने पर पारा विस्तार करता है और मापने वाली ट्यूब में ऊपर की ओर चलता है। हालाँकि, पारे की विषाक्तता के कारण ये थर्मोमीटर अब कम उपयोग किए जाते हैं।
डिजिटल थर्मोमीटर: ये थर्मोमीटर तापमान को डिजिटल स्क्रीन पर प्रदर्शित करते हैं। ये सटीक होते हैं और विभिन्न सेटिंग्स में उपयोग किए जा सकते हैं।
इंफ्रारेड थर्मोमीटर: ये थर्मोमीटर तापमान को मापने के लिए अवरक्त किरणों का उपयोग करते हैं। ये संपर्क रहित माप के लिए उपयोगी होते हैं और अक्सर औद्योगिक और चिकित्सा अनुप्रयोगों में उपयोग किए जाते हैं।
बिमेटलिक थर्मोमीटर: इन थर्मोमीटरों में दो अलग-अलग धातुओं की एक पट्टी होती है, जो तापमान में परिवर्तन होने पर मुड़ती है। इस मुड़ने से तापमान मापा जा सकता है।

 

  • कोनिस्कोप – Koniscope –

कोनिस्कोप एक वैगनिक यंत्र है जिसका प्रयोग वातावरण में धूल कणो की मात्रा का मापन करने के लिए किया जाता है कोनिस्कोप को डस्ट काउण्टर या  एत्निक डस्ट काउण्टर भी कहते है । कोनिस्कोप का आविष्कार स्कार्टलैंड के शोधकर्ता जॉन एटानिक द्वारा किया गया था ।

कोनिस्कोप (Koniscope) एक वैज्ञानिक उपकरण है जिसका उपयोग वायुमंडल में मौजूद कणों (जैसे धूल, पराग, धुआं, आदि) की सांद्रता को मापने और उनका विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग वायु की गुणवत्ता की निगरानी करने और वायु प्रदूषण के स्तर को मापने के लिए किया जाता है।

कोनिस्कोप की कार्यप्रणाली:

संग्रहण: कोनिस्कोप वायु के एक नमूने को एक संग्रहण माध्यम (जैसे फिल्टर पेपर) पर एकत्रित करता है। वायु में मौजूद कण इस माध्यम पर जमा हो जाते हैं।
अवलोकन: एक बार कणों को संग्रहित करने के बाद, उन्हें उपकरण की सहायता से अवलोकन किया जाता है। इससे कणों की संख्या और प्रकार के बारे में जानकारी मिलती है।
मापन: कोनिस्कोप का उपयोग कणों की सांद्रता को मापने के लिए किया जाता है। इससे वायु की गुणवत्ता के स्तर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

 

  • पॉलीग्राफ – polygraph

पॉलीग्राफ एक ऐसा उपकरण है जिसका प्रयोग झूट पाकसने के लिए किया जाता है, इसे ‘ लाई डिटेक्टर’ भी कहते है । इसका प्रयोग विशेषकर किसी अपराध का पता लगाने के लिए किया जाता है । पॉलीग्राफ टेस्ट में किसी व्यक्ति की साँस की गति, ब्लड प्रेशर, पल्स, शरीर से निकलने वाले पसीने और हाथ पैरो के संचलन को मापा जाता है ।

इस उपकरण को व्यक्ति से जोड़कर उसके विभिन्न शारीरिक सिंगलों का रिकॉर्ड करके देखा जाता है और अपराध का पता लगाया जाता है। आधुनिक पॉलीग्राफ का आविष्कार वर्ष 1921 में एक अमेरिकी पुलिस अधिकारी जॉन आगस्तस लार्सन द्वारा किया गया था । इसका उपयोग फोरेन्सिक जांच में किया जाता है ।

 

  • ट्रांसफार्मर –  Transformer –

ट्रांसफार्मर एक ऐसा डिवाइस है, जो विद्युत्त धरा को बिना किसी भौतिक अनुलग्नक के एक स्थान तक भेजने का कार्य करता है इसके आलावा यह विद्युत धरा को काम या अधिक करने में भी अहम् भूमिका निभाता है । ‘परिणाम’ भी कहते है । यह एक स्थैतिक प्रत्यावर्ती वैद्युत साधन है जो समान आवृतत्ति पर वैद्युत चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है ।

ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते है – संचरण और वितरण । ट्रांसफार्मर को वर्ष 1885 में विलियम स्टैनली ( यूएसए ).  लुसियान गालार्ड ( फ़्रांस ) और सेबेस्टियन जियानी दी फेरंटी ( इंग्लैण्ड ) द्वारा विकसित किया गया था । आदर्श ट्रांसफार्मर ऊर्जा उत्पन्न नहीं करता, न ही शक्ति का परिवर्तन करता है और न ही आवर्ती बदलता है ।

 

  • इन्वर्टर –  inverter

इन्वर्टर एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो डीसी कोएसि में परिवर्तित करता है जो डीसी को ऐसी में परिवर्तित करता है । इसे पावर इन्वर्टर या सकती प्रतीक भी कहते है इससे प्राप्त एसी किसी भी वोल्ट्ज और आवर्ती की हो सकती है । इन्वर्टर को उच्च शक्ति की इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेंट को जोड़कर बनाया जाता है । इन्वर्टर एक – फेज या तीन – फेज के हो सकते है । उनका आउटपुट साइन – वेव हो सकता है । जापान की इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माता कम्पनी ‘तोशिबा’ द्वारा पहली बार इन्वर्टर को एयर कंडीशनर में प्रयोग किया गया था ।

इन्वर्टर (Inverter) एक उपकरण है जो सीधी धारा (DC) को वैकल्पिक धारा (AC) में परिवर्तित करता है। यह विशेष रूप से उन स्थानों पर उपयोगी होता है जहां बैटरी या अन्य DC स्रोतों से बिजली उपलब्ध होती है, लेकिन अधिकांश उपकरण और विद्युत ग्रिड AC पर काम करते हैं। इन्वर्टर कई अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है, जैसे कि घरेलू बिजली आपूर्ति, सौर ऊर्जा प्रणाली, और विद्युत वाहन।
मापन: कोनिस्कोप का उपयोग कणों की सांद्रता को मापने के लिए किया जाता है। इससे वायु की गुणवत्ता के स्तर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

 

  • स्ट्रोबोस्कोप -stroboscope

स्ट्रोबोस्कोप को ‘ आवृत्तिदर्शी’ भी कहते है । इस यंत्र से चलते हुए किसी पिंड को स्थिर रूप में देखा जा सकता है । इसकी क्रिया दृष्टिस्थापकत्व पर निर्भर है । साधारण स्ट्रोबोस्कोप में एक वृत्ताकार पात्र या डिस्क होता है जिसकी बारी के समीप बराबर दूरियों पर एक अथवा दो – तीन वृत्ताकार पंक्तियों में छिद्र बने रहते है । वृत्ताकार डिस्क को एक चल से घुमाया जाता है और छिद्रो के पास आंख लगाकर गतिमान वस्तु का निरीक्षण किया जात्ता है जब छिद्र वास्तु के सामने आता है तभी वस्तु दिखाई पड़ती है । स्ट्रोबोस्कोप का आविष्कार ऑस्ट्रिया के खोजकर्ता साइमन वॉन स्टैम्फ़र द्वारा वर्ष 1832 में किया गया था ।

 

  • ऑडोमीटर – odometer

ऑडोमीटर एक प्रकार का यंत्र है जिसका उपयोग किसी वाहन ( कार या बाइक ) द्वारा तय की गई दूरी को मापने के लिए किया जाता है । इसे ऑडोग्राफ भी कहते है । यह डिवाइस इलेक्ट्रानिक, मैकेनिक या दोनों का मिश्रित रूप हो सकता है । प्राचीन ग्रीफ़ो – रोमन साम्रज्य और प्राचीन चीन में ऑडोमीटर की शुरूआती रूप के अस्तित्व के प्रमाण मिले है । आधुनिक ऑडोमीटर का आविष्कार अमेरिकी राजनेता बेंजामिन फ्रैंकलिन द्वारा 1775 ई. में किया गया है । वर्ष 1847 में विलिओयाम कॉटन द्वारा ‘ रेडोमीटर’ ईजाद किया गया ।

ऑडोमीटर के प्रमुख कार्य और विशेषताएँ:

कुल दूरी माप: ऑडोमीटर वाहन के जीवनकाल में यात्रा की गई कुल दूरी को मापता है।
ट्रिप मीटर: कई ऑडोमीटर में ट्रिप मीटर भी होता है, जो एक छोटी दूरी के लिए यात्रा की गई दूरी को मापने के लिए सेट किया जा सकता है।
सर्विस अनुसूची: ऑडोमीटर के डेटा का उपयोग वाहन की सर्विस और रखरखाव अनुसूची के लिए भी किया जा सकता है।
डिजिटल और एनालॉग: आधुनिक वाहनों में आमतौर पर डिजिटल ऑडोमीटर पाए जाते हैं, जो स्क्रीन पर दूरी प्रदर्शित करते हैं। पुराने वाहनों में एनालॉग ऑडोमीटर होते थे, जो रोटरी ड्रम के माध्यम से दूरी दिखाते थे।

 

  • स्पीडोमीटर – speedometer

स्पीडोमीटर विभिन्न प्रकार के वाहनों ( बस, करे व बाइक ) में लगाया जाने वाला गति मापने का यंत्र है जो वाहनों का वेग किमी प्रति घंटा या मील प्रति घंटा में बताते है । साधारण : यह मोटरगाड़ी के पिछले पहिये को चलाने वाले डण्डे में लगे दातीदार चाकर द्वारा एक ततार खोखली नाली में घूमता रहता है ।

प्राम्भिक प्रकार के स्पीडोमीटर को बनाने का श्रेय चार्ल्स बैबेज को दिया जाता है । जबकि  आधुनिक इलेक्ट्रिक स्पीडोमीटर का आविष्कार क्रोएशिया के वैज्ञानिक जोस्सिप बेलुसिच द्वारा वर्ष 1888 में किया गया था । मूल रूप से इससे ‘ वेलोसियोमीटर’ कहा जाता है । इसको ‘चालमापी’ भी कहते है ।

 

  • स्प्रिंग स्केल – Spring Scale –

यह एक प्रकार की तराजू है जिसमे एक स्प्रिंग होती है जिसका एक सिरा फिक्स रहता है और दूसरे सिरे पर हुक के द्वारा वस्तु लटकाई जाता है जिसका वजन ज्ञात करना होता है यह हुक के नियम पर कार्य करती है जिसके अनुसार, किसी ( प्रत्यास्थ ) वस्तु की लम्बाई में परिवर्तन, उस पार आरोपित बल के समानुपाती होता है । ब्रिटेन में पहला स्प्रिंग बैलेंस 1770 ई. की आसपास रिचर्ड साल्टर नामक व्यक्ति द्वारा बनाया गया । रिचर्ड साल्टर द्वारा स्थापित फर्म साल्टर एन्ड कम्पनी आज भी स्केल और बैलेंस बनाने वाली प्रसिद्ध कम्पनी है । इस कम्पनी ने वर्ष 1838 में स्पिंग बैलेंस का पेंटेंट कराया था ।

 

  • रिक्टर स्केल –  Richter scale –

यह भूकंप की तरंगो की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना है इस पैमाने पर भूकंप से निकली हुई ऊर्जा की मात्रा के मापन को एक ऐसा संख्या से दर्शाया जाता है । अमेरकी भूकंप वैज्ञानिक आओर भौतिकविद चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर स्केल का विकास 1930 के दशक में किया गया ।

वर्ष 1935 में इस पैमाने का पहली बार प्रयोग हुआ था । रिक्टर स्केल को ‘रिक्टर मैग्निट्यूब टेस्ट स्केल ‘ भी कहा जाता है वर्ष 1970 के बाद से भूकंप की तीव्रता के मापन के लिए रिक्टर पैमाने के स्थान पर मॉमेंट मैग्निट्यूब स्केल ( एमएमएस ) का प्रयोग भी हो रहा है रिक्टर स्केल पर 7.0 या इससे अधिक की तीव्रता वाले भूकंप को सामान्य से कही अधिक खतरनाक माना जाता है ।

Previous post

योगा व्यायाम करने की विधि ये है सही तरीका -आसन मन एवं आध्यात्म की उन्नति के | पदमासन करने की विधि क्या हैं This is the right way to practice yoga | progress of mind and spirituality. What is the method of doing Padmasana?

Next post

भारत में विश्व विरासत स्थल world heritage sites in india | trendystudy

Post Comment

You May Have Missed