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योगा व्यायाम करने की विधि ये है सही तरीका -आसन मन एवं आध्यात्म की उन्नति के | पदमासन करने की विधि क्या हैं This is the right way to practice yoga | progress of mind and spirituality. What is the method of doing Padmasana?

योगा व्यायाम करने की विधि ये है सही तरीका -आसन मन एवं आध्यात्म की उन्नति के | पदमासन करने की विधि क्या हैं This is the right way to practice yoga | progress of mind and spirituality. What is the method of doing Padmasana?

योगा / व्यायाम करने की विधि ये है सही तरीका – आसन मन एवं आध्यात्म की उन्नति के

This is the right way to practice yoga – asanas for the progress of mind and spirituality. 

पदमासन

पदमासन करने की विधि क्या हैं

What is the method of doing Padmasana?

 

पदमासन – इस आसान की मुद्रा बहुत कुछ खिले हुए कमल के सृदश होती है, इसलिए इसे पदमासन कहा जाता है।

यह एक classic yoga आसन है इसका उपयोग आमतौर पर ध्यान और प्राणायाम  [ साँस लेने के व्यायाम ] के लिए किया जाता है।

 

विधि – दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाकर स्वक्छ कम्बल पर बैठ जाये।

* सर्वप्रथम दोनों हाथ से बाये पैर को एड़ी पंजे से पकड़कर उठाये और नाभि (पेट) से स्पर्श करते हुए दहनी जंघा पर रखे।

* इसी प्रकार पुनः दोनों हाथ से दये पेअर की एड़ी पंजे से पकड़कर नाभि से स्पर्श करते हुए बायीं जंघा पर स्थापित करें। दोनों घुटनों को जमीन से टिकाने का प्रयाश करे।

* दोनों हथेली को ( ज्ञानमुद्रा बनाकर ) घुटनों पर इस प्रकार रखे की हथेली का प्रष्ट भाग नीचे की ओर हो।

* रीढ़ सीधी करें। नेत्र बंद कर कुछ सेकेण्ड श्वास पर ध्यान (मन को ) लगायें।

इन आसान को पैर बदलकर भी करें। प्राम्भिक अवस्था में क्षमतानुसार करे। धीरे – धीरे समय बढ़ाते हुए 10 मिनट तक करे।

 

पद्मासन से क्या क्या लाभ होते हैं ? –

1. यह विभिन्न रोगों की निवृत्ति में सहायक होत्ता है।

2. इससे मन एकाग्र होता है।

3. ध्यान करने के लिए यह उत्तम आसन है।

पदमासन का अभ्यास किसे नहीं करना चाहिए ?

पदमासन का अभ्यास उन्हें नहीं करना चाहिए जिन लोगो को साइटिका अथवा रीढ़ के निचले हिस्से में दर्द होता है।

 

महत्वपूर्ण सुझाव:-

– यदि आपको कोई असुविधा या दर्द महसूस हो, तो मुद्रा से बाहर निकलें और दूसरी बार पुनः प्रयास करें।

– अपने लचीलेपन को बढ़ाने में मदद के लिए,हल्के स्ट्रेचिंग व्यायाम का अभ्यास करें।
– यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त सहायता के लिए अपने घुटनों के नीचे योग ब्लॉक या कुशन जैसे प्रॉप्स का उपयोग करें।
– यदि आपके घुटने या कूल्हे में चोट है, तो पद्मासन का प्रयास करने से पहले किसी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श लें।

 

कर्णपीड़ासन- Karnapidasana-

 

कर्णपीड़ासन के प्रमुख लाभ लिखिए।

कर्णपीड़ासन के प्रमुख लाभ –

1. इस आसान के निरंतर अभ्यास करने से मस्तिष्क, कण, नाक, गला, नेत्र आदि सम्बंधित विकार नहीं होते है। ये सारे अङ्गं स्वस्थ होते है।

2. मोटापा, श्वासरोग, दमा, कब्ज, रक्तदोष आदि दूर होते है।

3. हृदय एवं फेफड़े पुष्ट होते है।

4. मेरुदंड लचीला व पुष्ट होता है।

5. रक्त का प्रभाव सर के भाग में तीव्र होने से मानसिक शक्ति बढ़ती है।

 

> कर्णपीड़ासन के बाद या विपरीत कौन सा आसन करना चाहिए।

कर्णपीड़ासन के बाद या विपरीत मत्स्यासन का अभ्यास करना है चाहिए।

> कर्णपीड़ासन का अभ्यास किसे नहीं करना चाहिए ?

कर्णपीड़ासन का अभ्यास उन्हें नहीं करना चाहिए जिन्हे कंधे का दर्द, कान बहने का रोग, नेत्र रोग, या अत्यधिक सर्दी जुकाम हों।

 

सर्पासर -Surpasser –

सर्पासन नाम पड़ने का कारण क्या है –

उत्तर – फन को ऊपर की ओर उठाते हुए सर्प जैसी आकृति बनने कारण इस आसान का सर्पासन नाम पड़ा

सर्पासन की सावधानियों का उल्लेख करें –

जिन व्यक्तियों को उदर रोग जैसे हर्निया एपेण्डे साइटिस अल्सर रोग हो उन्हें ये आसन नहीं करना चाहिए

सर्वासन से शरीर का कौन सा अंग सर्वाधिक लाभान्वित होत है –

सर्वासन से पेट एवं कमर सर्वाधिक लाभान्वित होते हैं ?

 

शलभासन -Shalabhasana –

शलभ का क्या अर्थ है

शलभ का शाब्दिक अर्थ होता है टिड्डा

शलभासन के क्या लाभ हैं –

कब्ज को दूर करना पाचन शक्ति बढ़ाना , नाड़ियाँ शुध्द होती है तथा ह्रदय एवं फेफड़े पुष्ट होते हैं , क्लोम ग्रंथि सक्रिय होने से मधुमेह की बीमारी मिटती है

शलभासन का अभ्यास कब करना चाहिए –

शलभासन का अभ्यास तब करना चाहिए जब पुराने कब्ज वायु विकार एवं अल्सर रोग से पीड़ित न हो |

 

धनुरासन -Dhanurasana –

धनुरासन में श्वास प्रवास की गति का उल्लेख करें

धनुरासन में पहले श्वास भरते हुए हाथों के सहारे पैरों को ऊपर यथाशक्ति तानते हैं एवं थकान आने पर श्वास छोड़ते हुए पूर्ण स्थिति में वापस आते हैं

धनुरासन से होने वाले तीन लाभों को लिखिए

* कब्ज एवं पित्त विकार दूर होते हैं

* मेरुदण्ड पीठ पेट सभी पुष्ट होते है

* स्नायु दौर्बल्यता दूर होती है

 

मकरासन-Makarasana-

मकरासन क्या है –

मकरासन में पेट के बल लेट कर हाथ जांघों के बगल में लाते हैं धीरे से दोनों पैर फैलाकर पैरों के पंजे बाहर की ओर एड़ियां अंदर की ओर रखते हैं धीरे से बाया हाथ कोहनी से मोड़ते हुए दाहिने हाथ के बगल के नीचे से निकाल कर हथेली कंधे पर लगा देते हैं तथा दाहिना हाथ कोहनी से मोड़ते हुए बाए कंधे के ऊपर ले जाते हैं फिर दोनों कोहनियों के त्रिकोण में अपने सर को टिका देते हैं

दोनों हाथों को कोहनी से मिलकर हथेलियां को गाल पर स्थापित कर कमर से धड़ को थोड़ा ऊपर उठते हैं पैरों को मिलाकर नीचे की ओर टेंट हैं स्वास्थ्य छोड़कर सामान्य करते हैं इसी अवस्था में विश्राम करते हैं

मकरासन के क्या लाभ है

मकरासन के लाभ

बच्चों की लंबाई बढ़ाने में सहायक, कुबड़ापन दूर होता है, क्रोध दूर होता है, उधर विकार दूर होते हैं, शारीरिक मानसिक थकान दूर होता है, फेफड़ों गले के विकार दूर होते हैं

शशकासन

शशकासन का यह नाम क्यों पड़ा –

शशक अर्थात खरगोश होता है इस आसन की आकृति में बैठे हुए खरगोश के समान प्रतीत होती है इसलिए इसका नाम शशकाशन पड़ा

शशकासन में आगे झुकते समय श्वास की स्थिति का उल्लेख कीजिए –

शशकासन में वज्रासन में बैठ कर दोनों पैरों को स्वास्थ्य भरते हुए ऊपर उठते हैं हाथों को तड़के सीधे मैं रखते हुए वह श्वास छोड़ते हुए धड़ को सामने की ओर मस्तक जमीन से छुए तक झुकते हैं कुछ छोड़ो के लिए श्वास बाहर की ओर रोक रखते हैं और फिर विश्वास लेते हुए हाथों और धड़ को एक चीज से सर के ऊपर की ओर ले जाते हैं तब स्वास्थ्य छोड़ तू यह धीरे-धीरे प्रारंभिक अवस्था में आ जाता है

सक्सेस आसान किस नहीं करना चाहिए जी जिन्हें गण कमर एवं पीठ में दर्द हो उन्हें यह आसान नहीं करना चाहिए

 

> सुप्त वज्रासन-Supta Vajrasana-

– सुप्त वज्रासन में हथेलियों की स्थिति स्पष्ट कीजिए –

सुप्त वज्रासन में हथेलियों को जंघा पर रखा जाता है।

– सुप्त वज्रासन में शरीर का कौन सा अंग सर्वाधिक लाभान्वित है

सुप्त वज्रासन में रीढ़ सर्वाधिक लाभान्वित होती है व उसमे अभूतपूर्ण लोच उत्पन्न होती है

– सुप्त वज्रासन के अभ्यास के दौरान कौन – कौन सी सावधानी बरतनी चाहिए

सुप्त वज्रासन का अभ्यास करते समय गर्दन में झटका नहीं देना चाहिए तथा पीछे लेटते समय हाथों का सहारा चाहिए।

 

> सिंहासन-

सिंहासन का यह नाम क्यों पड़ा ?

इस आसान में सिंह की आकृति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है अतः इसका नाम सिंहासन पड़ा।

सिंहासन के अभ्यास में ठुड्डी की क्या स्थिति रहती है

सिंहासन के अभ्यास में ठुड्डी की ओर जीभ को निकाला जाता है

सिंहासन से होने वाले लाभ –

1. इससे गर्दन का मांसपेशियों का व्यायाम हो जाता है

2. रक्त संचरण की भी वृद्धि होती है

3. गले फेफड़े के रोग नहीं होते

4. निर्भयता आती है

5. अभ्यासी निडर बनता है

6. स्वर प्रभावी होता है

 

> अर्धमत्स्येन्द्रासन-Ardhamatsyendrasana-

अर्धमत्स्येन्द्रासन किस प्राचीन मुनि के नाम से जाना जाता है

अर्धमत्स्येन्द्रासन प्राचीन मुनि मत्स्येन्द्रनाथ के नाम से जाना जाता है ये गुरुगोरखनाथ के गुरु थे

अर्धमत्स्येन्द्रासन में श्वास – प्रश्वास की स्थिति पर प्रकाश डालिए

अर्धमत्स्येन्द्रासन करते समय श्वास ली जाती है एवं आसान खोलते समय श्वास सामान्य करते हुए छोड़ी जाती है

अर्धमत्स्येन्द्रासन शरीर की किन ग्रंथियों को प्रभावित करता है

अर्धमत्स्येन्द्रासन पेट की अंत : स्त्रावी ग्रंथियों को प्रभावित करता है

 

मण्डूकासन-Mandukasana-

मण्डूकासन का अभ्यास की – किन व्यक्तियों के लिए वर्जित है –
मण्डूकासन का अभ्यास उन व्यक्तियों वर्जित है जिन्हे अल्सर, उच्च रक्तचाप एवं हृदय का रोग है

मण्डूकासन में हाथों की स्थिति का महत्वपूर्ण जानकारी –
मण्डूकासन में दोनों हाथ मुट्ठी बांधकर नाभि के अगल – बगल में स्थापित किये जाते है

 

> वक्रासन-Vakrasana-

वक्रासन का यह नाम क्यों पड़ा

इस आसान में पीठ वाले भाग को वक्राकार मोड़ा जाता है इसलिए इस आसान का नाम वक्रासन पड़ा

इस आसान से शरीर का कौन सा भाग सार्वधिक प्रभावित होता है

इस आसान से कमर वाला भाग सर्वाधिक प्रभावित होता है

वक्रासन के निम्न लाभ –

1. मेरुदण्ड लोचदार बनता है

2. कब्ज दूर करने में सहायक है

3. पाचन सकती बढ़ती है

> गर्भासन- pregnancy-

गर्भासन में शरीर की आकृति किस्से मिलती हुई बनती है

गर्भासन में शरीर की आकृति गर्भस्थ शिशु जैसी बनती है

गर्भासन का अभ्यास करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

गर्भासन का अभ्यास करते समय पद्मासन न लगने पर उसे बलपूर्वक नहीं करना चाहिए।

गर्भासन के कोई मुख्य तीन लाभ –

1. क्रोध को शांत करता है

2. स्नायु दौर्बल्यता को दूर करता है

3. पाचन क्रिया को ठीक कटा है

 

> कोणासन-Konasana-

कोणासन और त्रिकोणाकार में क्या अंतर है –

कोणासन में शरीर की आकृति कोणाकार होती है जबकि त्रिकोणासन में शरीर की स्थिति त्रिकोण बनती है

कोणासन में शरीर का कौन सा भाग सर्वाधिक प्रभावित होता है –

कोणासन में कमर एवं पेट सर्वाधिक प्रभावित होते है

 

> त्रिकोणासन-Trikonasana-

त्रिकोणासन की सावधानीयों का उल्लेख कीजिए

त्रिकोणासन को बलपूर्वक नहीं करना चाहिए इसे हमेशा क्षमतानुसार ही किया जाना चाहिए

त्रिकोणासन में ग्रीवा की क्या स्थिति होती है –

त्रिकोणासन में ग्रीवा हाथ की सीध में होती है

त्रिकोणासन के निम्न लाभ –

1 . कमर दर्द में लाभ प्राप्त होता है

2. पसलियों का दर्द ठीक होता है

 

> गरुड़ासन-Garudasana-

इस आसान का नाम गरुड़ासन क्यों पड़ा –

पुराणों में वर्णित पक्षी गरुण के नाम पर इस आसान का नाम गरुड़ासन पड़ा

गरुड़ासन में पैरों की स्थिति होती है

गरुड़ासन में दाये पैर को स्थिर रखा जाता है तथा बायें पैर को भूमि से ऊपर उठाकर दाहिने पैर पर सामने से पीछे की ओर रस्सी के समान लपेटा जाता है

गरुड़ासन के कोई दो निम्न लाभ –

1. साइटिका तथा गठिया रोग में लाभप्रद है

2. शरीर में संतुलन शक्ति का विकास होता है

 

> शवासन-Shavasana-

उस आसन का नाम बताइए, जो श्वास – प्रश्वास एवं हृदय की गति को सामान्य करता है

शवासन शवास – प्रश्वास एवं हृदय की गति को सामान्य करता है
शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर करने के लिए कौन सा आसन करना चाहिए –

शारीरिक एवं मानसिक थकन दूर करने के लिए शवासन करना चाहिए

शवासन के लाभ –

1. रक्तचाप की गति को सामान्य करता है

2. अनिद्रा व तनाव दूर करता है

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