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भारत में विश्व विरासत स्थल world heritage sites in india | trendystudy

भारत में विश्व विरासत स्थल world heritage sites in india | trendystudy

  भारत में विश्व विरासत स्थल – world heritage sites in india

भारत यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त विश्व धरोहर स्थलों world heritage sites in india  2024 की समृद्ध टेपेस्ट्री का घर है। राजसी ताज महल और खजुराहो के प्राचीन मंदिरों से लेकर लाल किले की जटिल वास्तुकला और हम्पी के खंडहरों तक, ये स्थल भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक खजाने का प्रतीक हैं। अपने प्रतिष्ठित स्थलों के माध्यम से यात्रा के साथ भारत की विरासत का अन्वेषण करें, प्रत्येक देश के अतीत और वर्तमान की एक अनूठी कहानी कहता है। भारत के उल्लेखनीय विश्व धरोहर स्थलों के बारे में और जानें।

 

  1. उत्तर प्रदेश में ‘आगरा का किला’ – ‘Agra Fort’ in Uttar Pradesh

  2.  एलोरा की गुफाएँ – Ellora Caves

  3. ताजमहल का वर्णन – Description of Taj Mahal

  4. काजीरंगा राष्टीय उद्यान – Kaziranga National Park

  5. अजन्ता की गुफाएँ – Ajanta Caves

  6. केवलादेव राट्रीय उद्यान – Keoladeo National Park

  7. कोणार्क का सूर्य मंदिर – Konark Sun Temple

  8. मानस वन्य जीव अभ्यारण – manas wildlife sanctuary

  9. गोवा के चर्च एवं आश्रम ( कॉन्वेंट ) – Churches and Ashrams of Goa

  10. महाबली पुरम के स्मारकों का समूह – Group of monuments of Mahabali Puram 

  1. फ़तेहपुर सीकरी स्थान -Fatehpur Sikri Place

  2. हम्पी स्मारक समूह – Hampi Group of Monuments

  3. खजुराहो में स्मारकों का समूह – Group of monuments in Khajuraho

  4. सुंदरवन राष्टीय उद्यान -Sundarban National Park 

  5. एलीफेण्टा की गुफाएँ –  Elephanta Caves

  6. कर्नाटक पट्टडकल में स्मारकों का समूह  –  Group of monuments at Pattadakal, Karnataka

  7. महान चोल मंदिर – Great Chola Temple

  8. नंदादेवी और फूलो की घाटी राष्टीय उद्यान – Nanda Devi and Valley of Flowers National Park

  9. साँची का स्तूप –  Sanchi-Stupa

  10. भीमबेटका पाषाण आश्रय – Bhimbetka stone shelter

  1. दिल्ली में स्थित हुमायु का मकबरा का वर्णन –  Description of Humayun’s Tomb located in Delhi

  2. दिल्ली के कुतुबमीनार एवं उसका परिसर –    Delhi’s Qutub Minar and its complex

  3. भारत की पहाड़ी माउण्टेन रेलवे का वर्णन – Description of Indian Mountain Railways

  4. बिहार बोधगया  में महाबोधि मंदिर परिसर

  5. चम्पानेर – पावागढ़ पुरातातिवक उद्यान – Champaner – Pavagadh Archaeological Park –

  6. छात्रपति शिवाजी टर्मिनस ( पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनल ) –  Chhatrapati Shivaji Terminus (formerly Victoria Terminal) 

  7. नालंदा महावीर पुरातत्व स्थल – Nalanda Mahavir Archaeological Site

  8. भारत के पश्चिमी घाट – western ghats of india

  9. दिल्ली में स्थित लाल किला परिसर – Red Fort complex located in Delhi

  10. पंजाब और हरियाणा केंद्र के चंडीगढ़ कैपिटल काम्प्लैक्स का वर्णन – Description of Chandigarh Capital Complex of Punjab and Haryana Center

  11. राजस्थान के पहाड़ी किले – hill forts of rajasthan

  12. सिक्किम का सबसे बड़ा कंचन राष्टीय उद्यान – Sikkim’s largest Kanchan National Park

  13. ग्रेट – हिमालय राष्टीय उद्यान –  Great – Himalaya National Park –

  14. राजस्थान के जन्तर – मन्तर, जयपुर – Jantar Mantar of Rajasthan, Jaipur

  15. रानी की वाव – Queen’s Vav

उत्तर प्रदेश में ‘आगरा का किला’ – ‘Agra Fort’ in Uttar Pradesh

  • उत्तर प्रदेश में आगरा में स्थित ‘ आगरा के किले’ का निर्माण मुग़ल बादशाह अकबर ने 1565 ई. में करवाया था । मुग़ल शासको का मुख्य निवास स्थान 1638  ई. में तक रहा है ।
  • यह महल मुगलो का शाही महल था । इसे ‘लाल किला’ भी कहा जाता है । इस ईमारत का निर्माण भारतीय तथा ईरानी शैली में किया गया है ।
  • इसमें जहाँगीरी महल शाहजहाँ द्वारा निर्मित, दीवान, – ए – खास जैसे खूबसूरत महलों के आलावा मना मस्जिद तथा मोती मस्जिद भी शामिल है ।
  • आगरा का किला यमुना नदी के किनारे स्थित है । इसकी चारदीवारी 70 फीट ऊँची है । इसमें दोहरे परत के परकोटे है । जिनमे बीच में भरी बुर्ज बराबर अन्तराल में है,
  • इसके अंदर शाहजहाँ के रेड मक़बरे और दीवान-ए-आम, दीवान-ए-ख़ास, मोती मस्जिद, जहाँगीर महल, शीश महल जैसे अनेक महल और भवन हैं।
  • यह स्थल भारतीय इतिहास, संस्कृति, और वास्तुकला के प्रति अपनी अनोखी महत्ता के लिए प्रसिद्ध है।इसकी भवन शैली, साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता, और उसका ऐतिहासिक महत्व भारतीय और विश्व इतिहास में अद्वितीय है।

 

  • इसके चार कोनो पर चार द्वार स्थित है, जिनमे से एक खिजड़ी द्वार यमुना नदी की तरफ खुलता है
  • वर्ष 2004 में आगरा के किले को आगा खा वास्तु पुरूस्कार दिया गया था और वर्ष 2004 में ही  भारतीय डाक विभाग ने इस महान क्षण की स्मृति में एक डाक टिकिट भी निकला था । आगरा के किले को ङेस्क द्वारा वर्ष 1983 में विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था ।

एलोरा की गुफाएँ – Ellora Caves

  • एलोरा की गुफाएँ महारास्ट्र के औरंगबाद जिले में स्थित है तथा एलोरा की गुफाओ का निर्माण कल्चुरि, चालुक्य तथा राष्ट्रकूट शासकों ने छठी सदी से नौवीं सदी के बीच करवाया गया था । एलोरा की गुफाए की संख्या लगभग 34 है । इन सभी निर्माण चारनंदरी पहाड़ियों के लंबवत हिस्से पर किया गया है । ये गुफाएँ हिन्दू, बौध्य और जैन धर्म को समर्पित है ।

 

  • बौद्ध गुफाएँ (गुफाएँ 1-12): ये गुफाएँ सातवीं और आठवीं सदी में बनाई गई थीं और इनमें विहार, चैत्य और मठ के रूप में बने स्थान शामिल हैं।
    हिन्दू गुफाएँ (गुफाएँ 13-29): ये गुफाएँ आठवीं और दसवीं सदी के बीच बनाई गई थीं। इनमें कैलाश मंदिर सबसे प्रसिद्ध है, जो एक विशाल चट्टान को काटकर बनाया गया है।
    जैन गुफाएँ (गुफाएँ 30-34): ये गुफाएँ नौवीं और दसवीं सदी में बनाई गई थीं और इनमें जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ और अन्य धार्मिक दृश्य बनाए गए हैं।
  • एलोरा की गुफाएँ यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं और ये भारतीय संस्कृति और कला की अद्वितीय धरोहर हैं। ये गुफाएँ पर्यटकों और इतिहासकारों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं।

 

  • गुफा संख्या 13-29 ( कुल 17 ) हिन्दू धर्म और गुफा संख्या 1-12 ( कुल 12 ) बौद्ध धर्म और गुफा संख्या 30-40 ( कुल 5 ) जैन धर्म को समर्पित है । इन गुफाओ में अधिक से अधिक सीढ़िया, और दरवाजे, खिड़की और प्रतिमाओं के साथ विस्तृत रूप से नक्काशीदार पत्थर का बना खम्भा और हॉल शामिल है राष्टकूट शासक में कृष्ण प्रथम द्वारा निर्मित कैलाश गुफा मंदिर सर्वाधिक उत्कृष्ट है ।
  • इन गुफाओं में की दीवारों पर सुन्दर नक्काशी और चित्रों के कारण UNESCO  द्वारा वर्ष 1983 में इन गुफाओ को विश्व विरासत स्थल घोसित कर दिया गया ।

 

ताजमहल का वर्णन – Description of Taj Mahal

ताजमहल उत्तर प्रदेश  के आगरा शहर में स्थित है इसका निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में करवाया है ताजमहल का निर्माण होना 1632 ई. में प्रारम्भ हो गया था । इस महल में लगभग 20 वर्ष की मेहनत के बाद 1653 ई. में पूर्णतः तैयार हो गया । ताजमहल यमुना नदी के किनारे स्थित बने ताजमहल का मुख्य वास्तुकार उस्ताद अहमद लहौरी तथा उस्ताद ईसा थे इसके निर्माण के लिए साम्रज्य और मध्य एशिया एवं ईरान से कारीगर बुलाए गए थे ।यह दुनिया के सात अजूबे में से एक है UNESCO द्वार वर्ष 1983 में ताजमल को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।

ताजमहल की विशेषताएँ: Features of Taj Mahal

  • आर्किटेक्चर: ताजमहल एक अद्वितीय संगमरमर का मकबरा है जो मुगल वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है। इसमें फारसी, इस्लामी, और भारतीय शैलियों का मिश्रण दिखाई देता है।
  • मुख्य संरचना: ताजमहल के केंद्र में एक बड़ा गुंबद है, जो सफेद संगमरमर से बना है और चारों ओर चार छोटे गुंबदों से घिरा है। मुख्य गुंबद के नीचे मुमताज महल और शाहजहाँ के मकबरे हैं।
  • चार मीनारें: ताजमहल के चारों कोनों पर चार मीनारें हैं, जो इसे संतुलित बनाती हैं और एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती हैं।
  • सजावट: ताजमहल में संगमरमर पर की गई जड़ाई और नक्काशी बहुत ही सुंदर है। इसमें ज्यामितीय पैटर्न, पुष्प आकृतियाँ, और कुरान की आयतें अंकित हैं।
  • चारबाग: ताजमहल के सामने एक सुंदर चारबाग शैली का बगीचा है, जिसमें फव्वारे, फूलों के बिस्तर, और एक बड़ी जलधारा है जो ताजमहल के प्रतिबिंब को दर्शाती है।
  • पूल और प्रवेशद्वार: बगीचे में एक बड़ा पानी का तालाब है, जिसे रिफ्लेक्टिंग पूल कहा जाता है। मुख्य प्रवेशद्वार भव्य और कलात्मक है।

 

काजीरंगा राष्टीय उद्यान – Kaziranga National Park

  • असम के दो जिलों – नागांव जिले के कलियाबोर सा – डिविजन और गोलाघाट जिले के बोकाखाट सब – डिविजन के बीच स्थित काजीरंगा स्थित कांजीरंगा राष्टीय उद्यान की स्तापना वर्ष 1905 में हुई थी ।
  • काजीरंगा राष्टीय उद्यान 146 वर्ग मील क्षेत्र में फैला यहाँ उद्यान एक सींग वाले गैण्डे के लिए विश्व में प्रसिद्ध है विश्व के संरक्षित इलाकों में से कांजीरंगा में सबसे अधिक बाघ पाए जाते है ।
  • इसे वर्ष 2006 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था । इस राष्टीय उद्यान का प्राकृतिक परिवेश वनों से युक्त है यहाँ बड़ी एलिफेंट ग्रास, मोठे वृक्ष, दलदल स्थान और उथले  तालाब है ।
  • यहाँ गैंडा और बाघ के अलावा हाथी, सांबर, भालू, चीता, सुअर, लंगूर, हुलॉक, गिब्बन, भेड़िया आदि जानवर मुख्य रूप से पाए जाते है ।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की विशेषताएँ: Features of Kaziranga National Park

  • वन्यजीव: काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान दुनिया में एक-सींग वाले गैंडों की सबसे बड़ी आबादी का घर है। इसके अलावा, यहाँ बाघ, एशियाई हाथी, दलदली हिरण, जंगली जल भैंसे, तेंदुआ, और गंगा नदी डॉल्फिन भी पाए जाते हैं।
  • पक्षी: यह उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए भी एक स्वर्ग है। यहाँ स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं, जैसे कि बड़ी बगुला, ग्रेट हॉर्नबिल, और बाज पक्षी।
  • वनस्पति: काजीरंगा में विविध प्रकार की वनस्पतियाँ मिलती हैं, जिनमें घास के मैदान, दलदली क्षेत्र, उष्णकटिबंधीय वन, और नदी के किनारे के क्षेत्र शामिल हैं।
  • संरक्षण प्रयास: काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कई उपाय किए गए हैं, जैसे कि गश्ती दल, सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम, और अवैध शिकार के खिलाफ कड़े कानून।
  • विश्व धरोहर: काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान को 1985 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया था, जिससे इसकी ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है।
  • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक महत्त्वपूर्ण पर्यटक स्थल है और यहाँ सफारी और बोट राइड्स के माध्यम से वन्यजीवों को नजदीक से देखा जा सकता है। पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीवों के प्रति जागरूकता के संदर्भ में यह उद्यान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • UNESCO ने कांजीरंगा राष्टीय उद्यान को वर्ष 1985 में विश्व विरासत उथल घोषित किया था ।

 

अजन्ता की गुफाएँ – Ajanta Caves

  • अजन्ता की गुफाएँ महाराष्ट के औरंगाबाद जिले में स्थित अजन्ता की गुफाओं का निर्माण सातवाहन वंश के शासको ने दूसरी सदी ईसा पूर्व से सातवीं सदी के बीच करवाया गया है ।
  • अजन्ता की गुफाएँ भगवान बुद्ध को समर्पित है । अजन्ता की गुफाएँ की संख्या लगभग 30 है । ये गुफाएँ अनुयायियों और बुद्ध धर्म के विद्यार्थियों के आवास के लिए निर्मित की गई थी ।
  • सहाद्री की पहाड़ियों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ है ।
  • इन गुफाओं की खोज ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा वर्ष 1819 में की गई थी । अजन्ता में फ्रेसक्रो तथा टेम्परा दोनों ही  विधियों से चित्र बनाए गए है ।
  • चित्र बनाने से पूर्व दीवार को भली – भाति रगड़कर साफ किया जाता है तथा फिर उसके उपरर लेप चढ़ाया जाता है अजन्ता की गुफा संख्या 16 में उत्तीर्ण ‘मरणासन्न राजकुमारी’ का चित्र प्रांसनीय है ।
  • UNESCO द्वारा इन गुफाओं को वर्ष 1983 में विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था ।

अजंता की गुफाओं की विशेषताएँ:Features of Ajanta Caves:

  • स्थान: अजंता की गुफाएँ एक घोड़े की नाल के आकार की वाघोरा नदी के किनारे स्थित हैं, और इन गुफाओं की प्राकृतिक सौंदर्य से भरे परिदृश्य के कारण यहाँ का वातावरण बहुत ही सुंदर है।
  • गुफाएँ: अजंता की गुफाओं में 29 गुफाएँ हैं, जिनमें चैत्य और विहार दोनों शामिल हैं। चैत्य गुफाएँ बौद्ध मंदिर के रूप में बनाई गई हैं, जबकि विहार गुफाएँ साधुओं के रहने के लिए बनाई गई थीं।
  • चित्रकारी: इन गुफाओं की दीवारों पर अद्वितीय भित्ति चित्र हैं, जो बौद्ध धर्म के विभिन्न कथाओं और जीवन से जुड़े दृश्यों को दर्शाते हैं। ये चित्र रंगीन और बहुत ही जीवंत हैं, जो प्राचीन भारतीय कला का अद्भुत उदाहरण हैं।
  • शिल्पकला: गुफाओं में बौद्ध मूर्तियाँ और शिल्पकला का शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है। मूर्तियों में बुद्ध, बोधिसत्व, और अन्य धार्मिक पात्रों के सुंदर और भावपूर्ण चित्रण हैं।
  • इतिहास: ये गुफाएँ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर छठी शताब्दी ईस्वी तक की अवधि में बनाई गई थीं। इस समय अवधि में इन गुफाओं का निर्माण विभिन्न शासकों द्वारा हुआ था, जिनमें सातवाहन और वाकाटक वंश शामिल हैं।
  • अजंता की गुफाएँ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं। ये गुफाएँ दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती हैं और भारतीय कला, वास्तुकला, और बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल हैं।

 

केवलादेव राट्रीय उद्यान – Keoladeo National Park

  • राजस्थान में स्थित केवलादेव राष्टीय उद्यान भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभ्यारण है । पहले इसे भरतपुर पक्षी अभ्यारण के नाम से जाना जाता था ।
  • इसमें हजारों की संख्या में दुर्लभ और और विलुप्त जाती के पक्षी पाए जाते है । यह मुख्य रूप प्रवासी साइबेरियाई सरसों के लिए जाना जाता है ।
  • इसके आलावा यहाँ घोमरा, उत्तरी शाह चकवा, जलपक्षी, लालसर बल्लव आदि पाए जाते है वर्ष 1964 में इसे अभ्यारण तथा वर्ष 1982 में राष्टीय उद्यान घोषित किया गया था ।
  • वर्ष 1985 में इसे UNESCO  ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया था।

केवलादेव राट्रीय उद्यान की मुख्य विशेषताएं : Highlights of Keoladeo National Park

  • जैव विविधता: केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की लगभग 370 प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं, जिनमें स्थानीय और प्रवासी पक्षी शामिल हैं। यह उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है।
  • प्रवासी पक्षी: यहां शीतकाल के दौरान साइबेरियन क्रेन, पेंटेड स्टॉर्क, ग्रे हेरॉन, और अन्य प्रवासी पक्षी आते हैं, जो उद्यान की सबसे प्रमुख विशेषताओं में से एक है।
  • जलाशय और दलदली क्षेत्र: उद्यान में जलाशय और दलदली क्षेत्र हैं, जो पक्षियों के लिए आदर्श निवास स्थान प्रदान करते हैं। ये क्षेत्र विभिन्न वनस्पतियों और जीवों का घर हैं।
  • संरक्षण प्रयास: केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों और अन्य जीवों के संरक्षण के लिए कई उपाय किए गए हैं, जैसे कि जल स्रोतों की प्रबंधन, वनस्पतियों का रखरखाव, और अवैध शिकार के खिलाफ कड़े कानून।

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कोणार्क का सूर्य मंदिर – Konark Sun Temple

  • ओडिशा के पूरी जिले में कोणार्क नामक स्थान पर स्थित सूर्य मंदिर निर्माण गैंग वंश के शासक नरसिंग देव द्वारा 13 वी शताब्दी ( 1236 – 1264 ई. के दौरान ) में कराया गया था ।
  • इस मंदिर का निर्माण रथ के रूप में किया गया है, जिसमे 24 खूबसूरत पहिए बने हुए है, जिस पर बागवान सूर्य देव को विराजमान दिखया गया है ।
  • रथ का प्रत्येक पहिया लगभग 10 फीट चौड़ा है, और रथ को शक्तिशाली घोड़ो द्वारा खींचा हुआ दिखाया गया है।
  • मंदिर के दक्षिणी हिस्से में दो घोड़े बने हुए है, जिन्हे ओडिशा सरकार द्वारा अपने राजकीय चिन्ह के तौर  पर चुना गया है ।
  • इस मंदिर को अंग्रेजी में ‘ब्लैक पैगोडा’ भी कहा जाता है ।
  • UNESCO  द्वारा कोणार्क के सूर्य मंदिर को वर्ष 1984  में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था ।

कोणार्क के सूर्य मंदिर की विशेषताएँ: Features of Konark Sun Temple:

  • वास्तुकला: कोणार्क का सूर्य मंदिर एक विशाल रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें 24 विशाल पत्थर के पहिए और सात घोड़े हैं। यह रथ सूर्य देवता का प्रतीक है, जो पूर्व की दिशा में उगते सूर्य की ओर जाता है।
  • शिल्पकला: मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर intricate carvings हैं, जिनमें देवताओं, नृत्य, संगीत, और विभिन्न धार्मिक और सामाजिक दृश्यों के रूप में सुन्दर रूप से चित्रित किया गया है।
  • गर्भगृह: मंदिर के गर्भगृह में सूर्य देवता की एक विशाल मूर्ति स्थापित थी, लेकिन अब यह स्थान नष्ट हो गया है।
  • पत्थर के पहिये: मंदिर के रथ के 24 पहिये समय को मापने के लिए एक धूप घड़ी के रूप में भी कार्य करते हैं।
  • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल: कोणार्क का सूर्य मंदिर 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त कर चुका है।
  • सौरत्य उत्सव: मंदिर में हर साल एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव आयोजित किया जाता है जिसे ‘कोणार्क सौरत्य’ कहा जाता है। यह संगीत और नृत्य का उत्सव है, जहां विभिन्न कलाकार अपने कला का प्रदर्शन करते हैं।
  • कोणार्क का सूर्य मंदिर भारतीय वास्तुकला और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।

 

मानस वन्य जीव अभ्यारण – manas wildlife sanctuary

  • असम में भूटान तथा हिमालय पर्वतमाला की तलहटी में स्थित मानस वन्य जीव अभ्यारण अनूठे जैव – विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है ।
  • यह वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना के तहत टाइगर रिजर्व के नेट्वर्क में शामिल होने वाला भारत का पहला रिजर्व था ।
  • यह असम के पश्चिम में संकोष नदी और पूर्व में धानसीरी नदी के साथ 2837 वर्ग किमी के इलाके में फैला है । यह बूटन के रॉयल मानस नेशनल पार्क के समीप है ।
  • यहाँ बाघ एवं हाथी के अतिरिक्त एक सींग वाला गैंडा ( भारतीय गैण्डा ) और बारहसिंघा, तेंदुआ, एशियाई स्वर्ण बिल्ली, टोपी वाले लंगूर, साम्भर, हिरण आदि मुख्य रूप से पाए जाते है ।
  • UNESCO द्वारा इसे वर्ष 1985 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया था । वर्ष 1989 में इसे बायोस्फेयर रिजर्व का दर्जा मिला था ।
  • मानस वन्यजीव अभयारण्य अपनी समृद्ध जैव विविधता, विशिष्ट वन्यजीव प्रजातियों, और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।

मानस वन्य जीव अभ्यारण की  महत्वपूर्ण विशेषताएँ : Important Features of Manas Wildlife Sanctuary

  • जैव विविधता: मानस वन्यजीव अभयारण्य अपनी विविध वन्यजीव प्रजातियों के लिए जाना जाता है। यहाँ बाघ, एक-सींग वाले गैंडे, एशियाई हाथी, तेंदुआ, गोल्डन लंगूर, और जंगली भैंसे जैसे महत्वपूर्ण प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • पक्षी विविधता: अभयारण्य पक्षियों की अनेक प्रजातियों का घर है। यहाँ स्थानीय और प्रवासी पक्षी दोनों ही पाए जाते हैं, जैसे कि महान हॉर्नबिल, ओरींटल डार्टर, और बंगाल फ्लोरिकन।
  • भौगोलिक विविधता: अभयारण्य में वन, घास के मैदान, दलदली क्षेत्र, और पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं, जिससे यह वन्यजीवों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बन जाता है।
  • संरक्षण प्रयास: मानस वन्यजीव अभयारण्य में वन्यजीव संरक्षण के लिए कई उपाय किए जाते हैं, जैसे कि गश्ती दल, अनुसंधान कार्यक्रम, और अवैध शिकार के खिलाफ कड़े कानून।
  • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल: मानस वन्यजीव अभयारण्य को 1985 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया था। यह क्षेत्र विश्व के महत्वपूर्ण जैव विविधता स्थलों में से एक है।

 

गोवा के चर्च एवं आश्रम ( कॉन्वेंट ) – Churches and Ashrams of Goa

  • गोवा में चर्चो का निर्माण पुर्तगाली शासन के अंतर्गत 16 वी और 17 वी शताब्दी के बीच हुआ था ।
  • इसमें प्रमुख रूप से सेंट कैथेड्रल, सेन्ट फ्रांसिस ऑफ असीसी के चर्च एवं आश्रम, सेन्ट कैथरटीन चैपल, बेसिलिका ऑफ बोम जीसस, चर्च लेडी ऑफ रोजरी आदि शामिल है ।
  • यहाँ का चर्च ऑफ फ्रांसिस असीसी, सेन्ट फ्रांसिस को समर्पित है । यहाँ लकड़ी पर उकेरी गई काष्ट कला और कई चित्र कला की दृष्टि से उत्कृष्ट है ।
  • पुर्तगाली गीतिका शैली में निर्मित इस चर्च का आंतरिक ढांचा कलात्मक और पांच घाटियों से सुशोभित है । यह कैथेलिक चर्च गोवा का सर्वाधिक विशाल और आकर्षक चर्च है ।
  • वर्ष 1986 में ङेस्क ने गोवा के चर्च और आश्रम को सम्लित रूप से विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

 

गोवा के चर्च और कॉन्‍वेंट के बारे में जानकारी : Information about churches and convents of Goa

  • बासिलिका ऑफ बॉम जीसस: बॉम जीसस के चर्च गोवा का सबसे प्रसिद्ध चर्च है। यह चर्च सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों का निवास स्थान है। चर्च का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था और यह बारोक शैली की वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।
  • सी कैथेड्रल: सी कैथेड्रल गोवा का सबसे बड़ा चर्च है और इसे पुरानी गोवा में स्थित है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था और यह मैनुअलिन शैली की वास्तुकला में बनाया गया है।
  • सेंट कैथरीन चर्च: यह चर्च पुरानी गोवा के ऐतिहासिक परिसर में स्थित है और 1510 में अल्फांसो डी अल्बुकर्क द्वारा स्थापित किया गया था। यह गोवा के सबसे पुराने चर्चों में से एक है।
  • फ्रांसिस ऑफ असिसी चर्च: फ्रांसिस ऑफ असिसी चर्च एक खूबसूरत चर्च है जो बासिलिका ऑफ बॉम जीसस के पास स्थित है। इसमें मुगल, गोथिक, और बारोक शैली का मिश्रण दिखाई देता है।
  • सेंट ऑगस्टीन टॉवर: यह एक ऐतिहासिक कॉन्वेंट का हिस्सा है जो अब खंडहर के रूप में मौजूद है। यह टॉवर पुरानी गोवा के प्रमुख स्थल है।
  • सेंट कैजेटन चर्च: यह चर्च पुरानी गोवा में स्थित है और 17वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इसकी वास्तुकला रेनैसेंस शैली की है और यह सुंदर रूप से सजाया गया है।

 

महाबली पुरम के स्मारकों का समूह – Group of monuments of Mahabali Puram 

  • तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित महाबली पुरम के स्मारकों के समूह का निर्माण पल्ल्व शासकों ने सातवीं – आठवीं सदी में करवाया था ।
  • यहाँ पर निर्मित पल्ल्व मंदिरो और स्मारकों से मिलने वाले अवशेषों में चट्टानों से निर्मित ‘अर्जुन की तपस्या’ ‘गंगावतरण’ शिव की महिमा’ जैसी मूर्तियों से युक्त गुफा मंदिर और समुद्र पर बना शैव मंदिर प्रमुख है ।
  • ये मंदिर भारत की प्राचीन वास्तुकला के गौरवमय उदाहरण माने जाते है । महाबलीपुरम के स्मारकों के मुख्यतः चार समूह है ।
  • ये मुख्य रूप से अपने रथों, मंडपों एवं नक्काशियों के कारण विश्व प्रसिद्ध है ।
  • UNESCO   द्वारा इन स्मारक समूहों को वर्ष 1984 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

महाबलीपुरम के स्मारकों का समूह निम्नलिखित प्रकार की संरचनाओं से बना है: The group of monuments at Mahabalipuram consists of the following types of structures

  • रथ: महाबलीपुरम के प्रसिद्ध पंच रथ मंदिर हैं जो पाँच अलग-अलग आकारों और शैलियों में बने हुए हैं। इन रथों को चट्टान को काटकर बनाया गया है और ये भारतीय महाकाव्य महाभारत के पात्रों के नाम पर हैं, जैसे कि धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, द्रौपदी रथ, और नकुल-सहदेव रथ।
  • शोर मंदिर: शोर मंदिर महाबलीपुरम का सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित मंदिर है। यह मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है और इसमें भगवान शिव को समर्पित दो मंदिर हैं। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा नरसिम्हवर्मन II द्वारा किया गया था।
  • गुफा मंदिर: महाबलीपुरम में कई गुफा मंदिर हैं जिनमें बौद्ध और हिंदू चित्रण और मूर्तियाँ हैं। ये गुफा मंदिर चट्टान को काटकर बनाए गए हैं और इनके अंदर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और कथाएँ चित्रित की गई हैं।
  • मंडप: महाबलीपुरम में कई मंडप (मंदिर जैसे संरचनाएँ) हैं जिनमें मूर्तियाँ और दृश्य अंकित हैं। ये मंडप धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के हैं।
  • महाकाव्य शिल्प: महाबलीपुरम में बड़े पैमाने पर शिल्प कला के अद्भुत उदाहरण हैं। इनमें सबसे प्रमुख है “अरजुन की तपस्या” जिसे “देवों की दीवार” के रूप में भी जाना जाता है। यह विशाल शिल्प महाभारत के अर्जुन के तपस्या की कहानी को दर्शाता है।

 

फ़तेहपुर सीकरी स्थान -Fatehpur Sikri Place

  • फतेहपुर सीकरी उत्तर प्रदेश के आगरा से 26 मील स्थित है इसका निर्माण मुग़ल बादशाह अकबर ने 1571 ई.  ( अबुल फजल और मोहम्मद आरिफ कंधारी के अनुसार ) में करवाया था तथा यही मुग़ल राजधानी की नीव राखी गई ।
  • इस नई राजधानी में अनेक महल, आवासीय भवन, सरकारी और धार्मिक प्रयोग के भवन आदि बनाए गए ।
  • सम्राट के लिए सीकरी का विशेष महत्व था, क्योकि सीकरी की पहाड़ी पर रहने वाले संत शेख सलीम चिश्ती ने अकबर ने गुजरात और राजस्थान विजय के उपलब्ध में सीकरी पहाड़ी पर फतेहपुर सीकरी का निर्माण करवाया ।
  • अकबर द्वारा निर्मित फतेहपुर सीकरी आगरा की राजनीतिक सत्ता और अजमेर की आध्यात्मिक सत्ता का सयुंक्त स्वरूप था ।
  • बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर स्थित इस राजधानी में जमा मस्जिद भारत के सबसे बड़े मस्जिदों में से एक है । वर्ष 1986 में UNESCO ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

 

फतेहपुर सीकरी के प्रमुख स्थान और विशेषताएँ : Major places and features of Fatehpur Sikri

  • दीवान-ए-आम: यह वह स्थान है जहां अकबर आम लोगों के साथ न्याय करने और मामलों को सुनने के लिए बैठता था। इसकी वास्तुकला में बड़े दरबार और विस्तृत स्तंभ हैं।
  • दीवान-ए-खास: यह वह स्थान है जहां अकबर अपने दरबार के महत्वपूर्ण मामलों और निजी सलाहकारों के साथ मिलकर चर्चाएँ करता था। इसकी भव्यता और अद्वितीय शैली इसे विशेष बनाती है।
  • पंच महल: पंच महल एक पाँच मंजिला इमारत है जो एक पिरामिड की तरह दिखाई देती है। इसके स्तंभ और खुली बालकनी इसे अनूठा बनाते हैं।
  • बुलंद दरवाजा: बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी का एक प्रमुख आकर्षण है। यह विशाल प्रवेश द्वार अकबर की गुजरात विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था और इसकी ऊँचाई लगभग 54 मीटर है।
  • शेख सलीम चिश्ती की दरगाह: शेख सलीम चिश्ती की दरगाह फतेहपुर सीकरी में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह अकबर के समय के एक प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती को समर्पित है।
  • जोधाबाई का महल: यह महल अकबर की पत्नी जोधाबाई के रहने के लिए बनाया गया था। इसकी वास्तुकला में हिंदू और मुगल शैली का मिश्रण दिखाई देता है।
  • अंकित कला: फतेहपुर सीकरी के परिसर में कई प्रकार की शिल्पकला और अंकित कला देखने को मिलती है, जो मुगल शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

 

हम्पी स्मारक समूह – Hampi Group of Monuments

  • कर्नाटक के बेल्लारी जिले में स्थित वर्तमान हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर ( 14 वी – 16 वी शताब्दी ) की राजधानी थी ।
  • तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित प्रचीन शानदार नगर ‘हम्पी’ के अब मात्र खंडहरों के रूप में ही ( अवशेष / अंश ) में उपस्थित है ।
  • 418724 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस स्मारक समूहों के बचे हुए 1600 अवशेषों से शहरी, सही और धार्मिक प्रणलियों की विवधता का पता चलता है ।
  • इन अवशेषों में किले, नदी किनारे बनी कलाकृतियों, शाही एवं धार्मिक परिसर, मंदिर, आश्रम, स्तम्भ वाले कक्ष, मंडप आदि प्रमुख रूप से शामिल है ।
  • वर्ष 1986 में  UNESCO द्वारा हम्मी स्मारक समूह को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।
  • हम्पी में कई महत्वपूर्ण स्मारक हैं जो विजयनगर साम्राज्य की वास्तुकला और कला को दर्शाते हैं।
  • इनमें मंदिर, महल, मंडप, जलाशय, और अन्य स्थापत्य कला शामिल हैं।

 

हम्पी स्मारक समूह – Hampi Group of Monuments मुख्य आकर्षणों में शामिल हैं:

  1. विट्ठल मंदिर: यह हम्पी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जो अपनी वास्तुकला और संगीतमय स्तंभों के लिए प्रसिद्ध है।
  2. विरुपाक्ष मंदिर: यह मंदिर हम्पी के प्राचीन मंदिरों में से एक है और भगवान शिव को समर्पित है।
  3. लोटस महल: यह एक सुंदर महल है जो कमल के फूल की आकृति में बना हुआ है।
  4. आच्युतराया मंदिर: यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और विजयनगर साम्राज्य के समय का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल था।
  5. हजारा राम मंदिर: यह मंदिर रामायण के कथाओं से सजाया गया है और अपनी अद्वितीय नक्काशियों के लिए प्रसिद्ध है।

 

खजुराहो में स्मारकों का समूह – Group of monuments in Khajuraho

  • मध्य प्रदेश के छतरपुर में स्थित खजुराहो के स्मारक समूहों का निर्माण चंदेल के शासकों द्वारा 950 से 1050 ई. के बीच करवाया गया था ।
  • इस काल को चंदेल शासको का स्वरयुग मन जाता है । प्रत्येक चंदेल शासक ने अपने शासनकाल के दौरान एक मंदिर का निर्माण करवाया था । इसलिए खजुराहो के सभी मंदिर किसी एक चंदेल शासक द्वारा नहीं बनवाए गए है,
  • बल्कि मंदिर का निर्माण करना चन्देलों की परंपरा थी जिसका चंदेल वंश के लगभग सभी शासको ने पालन किया ।
  • खजुराहों के स्मारक समूहों में वर्तमान केवल 20 मंदिर ही शेष बचे है। वर्तमान में सबसे लोकप्रिय मंदिर कंदारिया महादेव मंदिर है, जिसका निर्माण चंदेल शासक विद्याधर ने करवाया था ।
  • यह स्मारक समूह हिन्दू तथा जैन धर्म से सम्बंधित है ।
  • वर्ष 1986 में UNESCO ने खजुराहों के स्मारक समूह को विश्व विरासत स्थल घोषित किया  था ।

खजुराहो के स्मारकों का समूह मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में विभाजित है: The group of monuments of Khajuraho is mainly divided into three areas.

पश्चिमी समूह: यह समूह खजुराहो का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध समूह है। इसमें प्रमुख मंदिरों में शामिल हैं:

  • कंदारिया महादेव मंदिर: यह खजुराहो का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है और इसकी अद्वितीय नक्काशी और वास्तुकला के लिए जाना जाता है।
  • लक्ष्मण मंदिर: यह भगवान विष्णु को समर्पित है और अपने सुंदर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
  • देवी जगदंबा मंदिर: यह देवी दुर्गा को समर्पित है और इसके छोटे आकार के बावजूद इसकी नक्काशी उत्कृष्ट है।
  • पूर्वी समूह: इस समूह में जैन मंदिर और हिन्दू मंदिर दोनों शामिल हैं। इनमें प्रमुख हैं:
    परश्वनाथ मंदिर: यह जैन धर्म के मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण है।
    हनुमान मंदिर: यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण मंदिर है।
  • दक्षिणी समूह: इस समूह में कुछ महत्वपूर्ण मंदिर शामिल हैं:
    दुल्हादेव मंदिर: यह भगवान शिव को समर्पित है और इसकी नक्काशी सुंदर है।
    चतुर्भुज मंदिर: यह भगवान विष्णु को समर्पित है और अपनी मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।

 

सुंदरवन राष्टीय उद्यान -Sundarban National Park –

  • सुंदरबन राष्टीय उद्यान पश्चिम बंगाल के दक्षिणी भाग में गंगा नदी के सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र में स्थित एक राष्टीय उद्यान, बाघ संरक्षित क्षेत्र तथा बायोस्पेयर रिजर्व क्षेत्र है यह उद्यान विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है ।
  • सुंदरवन विश्व  का सबसे बड़ा डेल्टा है । इसमें 10000 वर्ग किमी में सदाबहार वन है , जो भारत तथा बांग्लादेश में फैला है ।
  • भारत की सीमा में पड़ने वाला क्षेत्र सुंदरबन राष्टीय उद्यान कहलाता है । सुन्दरबन लगभग 38500 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है, जिसका करीब एक – तिहाई हिस्सा/पानी दलदल से भरा है ।
  • सुन्दरबन रॉयल बंगाल टाइगर और सुंदरी वृक्षों के लिए विश्व  प्रसिद्ध है ।
  • वर्ष 1973 में इसे टाइगर रिजर्व, वर्ष 1977 में वन्यजीव अभ्यारण तथा वर्ष 1984 में राष्टीय उद्यान घोषित किया गया ।
  • UNESCO ने वर्ष 1987 में इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया था । वर्ष 1989 में सुंदरबन इलाके को बायोस्फेयर रिजर्व घोषित किया गया था ।

 

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान की कुछ मुख्य विशेषताएँ : Some main features of Sundarban National Park

  1. रॉयल बंगाल टाइगर: सुंदरवन रॉयल बंगाल टाइगर का घर है और यहाँ की प्रमुख वन्यजीव प्रजातियों में से एक है। ये बाघ अपने जल-कुशलता के लिए प्रसिद्ध हैं और मैंग्रोव के जंगलों में घूमते हैं।
  2. बायोडायवर्सिटी: सुंदरवन विभिन्न प्रकार की वन्यजीव प्रजातियों के लिए घर है, जिसमें पक्षी, सरीसृप, उभयचर, और मछलियाँ शामिल हैं। यहाँ के प्रमुख प्रजातियों में मगरमच्छ, डॉल्फिन, हिरण, और पक्षियों की कई प्रजातियाँ शामिल हैं।
  3. मैंग्रोव वन: सुंदरवन अपने घने मैंग्रोव वन के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे एक अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र बनाता है। ये मैंग्रोव वन तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा करते हैं और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  4. नदी और जलमार्ग: सुंदरवन में कई नदियाँ और जलमार्ग हैं जो इस क्षेत्र की सुंदरता और विशेषता को बढ़ाते हैं। ये जलमार्ग पर्यटकों के लिए नाव पर्यटन का मुख्य साधन हैं।
  5. संगठित पर्यटन: सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान में संगठित पर्यटन की सुविधाएँ मौजूद हैं, जिसमें पर्यटकों को वन्यजीवों को देखने और पारिस्थितिकी तंत्र का अनुभव करने का अवसर मिलता है।

 

एलीफेण्टा की गुफाएँ –  Elephanta Caves

  • एलीफेण्टा द्वीप महाराष्ट के मुंबई पर स्थित है इन गुफाओ का निर्माण पांचवी सदी से छठी सदी के बीच में हुआ था ।
  • प्राचीन कल मी एलीफेण्टा का धारापुरी के नाम से भी जाना जाता है, जो कोंकणी मौर्य की द्वीपीय राजधानी थी ।
  • एलीफेण्टा द्वीप अरब सागर में स्थित है , यहाँ गुफाओ के दो समूह है – पहला समूह बड़ा है, और इसमें हिन्दूओ के पांच गुफाएँ है । दूसरा समूह छोटा है और इसमें दो बौद्ध गुफाएँ है ।
  • हिन्दू गुफाओ में चट्टानों को काटकर मूर्तियों बनाई गई है, जो शैव हिन्दू संप्रदाय का प्रतीक है आओर भगवान शिव को समर्पित है ।
  • वर्ष 1987 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

एलीफेंटा गुफाओं की मुख्य विशेषताएँ : Main Features of Elephanta Caves

  1. मुख्य गुफा (गुफा 1): यह गुफा सबसे बड़ी और प्रमुख गुफा है। इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों और कथाओं का चित्रण किया गया है। विशेष रूप से, यहाँ शिव की त्रिमूर्ति (महेश) की विशाल मूर्ति है, जिसमें शिव के तीन रूपों—सृष्टि, पालन, और संहार—का प्रतिनिधित्व किया गया है।
  2. अन्य गुफाएँ: एलीफेंटा में कुल सात गुफाएँ हैं, जिनमें से पांच हिंदू गुफाएँ और दो बौद्ध गुफाएँ हैं। अन्य गुफाओं में भी शिव और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।
  3. मूर्तिकला: गुफाओं में अद्वितीय मूर्तिकला और नक्काशी देखने को मिलती है। भगवान शिव के विभिन्न रूपों को सुंदरता और कलात्मकता के साथ दर्शाया गया है।
  4. रॉक-कट वास्तुकला: एलीफेंटा की गुफाएँ चट्टान काटकर बनाई गई हैं, जो उनकी निर्माण कला को दर्शाती हैं। गुफाओं के अंदरूनी भाग में स्तंभ, मंडप, और मंदिर जैसी संरचनाएँ हैं।
  5. पर्यटन: एलीफेंटा की गुफाएँ पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए पर्यटक नावों का उपयोग करते हैं, जो मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया से उपलब्ध हैं।

 

कर्नाटक पट्टडकल में स्मारकों का समूह  –  Group of monuments at Pattadakal, Karnataka

  • कर्नाटक के पट्टडकल में स्थित स्मारकों का समूह कला का उत्कृष्ट उदाहरण है इनका निर्माण चालुक्य वंश के दौरान 7 वी और 8 वी शताब्दी में करवाया गया था ।
  • इसमें उत्तर एवं दक्षिण भारत की वास्तुकला का सामंजस्य देखने को मिलता है । नौ हिन्दू मंदिरो की प्रभावशाली श्रृंखला के साथ – साथ इसमें एक जैन अभ्यारण भी है।
  • समूह का उत्कृष्ट नमूना विरुपाक्ष मंदिर है, इसका निर्माण महारानी लोक मदेवी नई 740 ई. में अपने पति की दक्षिण के राजाओ पर मिली जीत की याद में करवाया था ।
  •  वर्ष 1987 में इस स्मारक समूह को विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

पट्टडकल के स्मारकों के समूह की मुख्य विशेषताएँ : Salient features of the group of monuments at Pattadakal

  1. विरुपाक्ष मंदिर: यह पट्टडकल का सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है और इसका निर्माण विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल के दौरान हुआ था। इसकी वास्तुकला द्रविड़ शैली में है और यह सुंदर नक्काशी और मूर्तियों से सुसज्जित है।
  2. मल्लिकार्जुन मंदिर: यह भी भगवान शिव को समर्पित है और इसकी वास्तुकला द्रविड़ शैली में है। यह मंदिर भी अपनी नक्काशी और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।
  3. संस्कृत मंदिर: यह एक छोटी लेकिन सुंदर संरचना है। इसे द्रविड़ और नागर स्थापत्य शैलियों के संयोजन में बनाया गया है।
  4. जैन मंदिर: पट्टडकल में एक जैन मंदिर भी है जो इसकी धार्मिक विविधता को दर्शाता है।
  5. अन्य मंदिर: पट्टडकल में कई और महत्वपूर्ण मंदिर हैं जैसे संगीता मंदिर, काशिविश्वनाथ मंदिर, और जंबुलिंगेश्वर मंदिर।

 

महान चोल मंदिर – Great Chola Temple

  • महान चोल मंदिरों का निर्माण चोल शासकों के द्वारा के द्वारा 11 वी से 12 वी सदी के बीच करवाया गया था ।
  • इन मंदिरों मी तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर, गंगाईकोण्डा चोलपुरम का वृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर प्रमुख रूप से शामिल है ।
  • तंजावुर के वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण 1003 – 1010 ई.  के बीच राजराज प्रथम के द्वारा, गंगाईकोंडा चोलपुरम के वृहदेश्वेर मंदिर का निर्माण 1035  ई.  में राजेंद्र प्रथम के द्वारा तथा दारासुरम के एरावाटेश्वर मन्दिर का निर्माण 1146 – 1173 ई.  के बीच राजराज द्वितीय के द्वारा करवाया  गया था ।
  • तंजावुर के मंदिर के नियमन में 130000 टन ग्रेनाइट का उपयोग किय्या गया है । मंदिर के अंदर गोपुरम के भीतर एक चौकोर मंडप का निर्माण हुआ है ।
  • गंगाईकोण्डा चोलपुरम वाले मंदिर में 53 मी  का विमान ( गर्भ गृह मीनार ) का निर्माण किया गया है, उसमे सुन्दर उर्ध्व नक्काशी की गई है ।
  • वर्ष 1987 में UNESCO के डोरा महान चोल मदिरो को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था ।

महान चोल मंदिर की मुख्य विशेषताएँ : Main Features of the Great Chola Temple

  1. बृहदेश्वर मंदिर: यह भगवान शिव को समर्पित है और तंजावुर में स्थित है। इसकी ऊँचाई लगभग 66 मीटर है, जो इसे दुनिया के सबसे ऊँचे मंदिरों में से एक बनाती है। मंदिर का गुंबद (शिखर) विशाल है और एक बड़े मोनोलिथिक पत्थर से बना हुआ है।
  2. नक्काशी और मूर्तिकला: मंदिर की दीवारों, स्तंभों, और मंडपों पर उत्कृष्ट नक्काशी और मूर्तिकला देखी जा सकती है। इनमें देवी-देवताओं, नृत्य मुद्राओं, और धार्मिक कथाओं का चित्रण किया गया है।
  3. आंगन: मंदिर के आंगन में एक नंदी की विशाल मूर्ति है, जो शिव के वाहन के रूप में जानी जाती है। यह मूर्ति विशाल और प्रभावशाली है।
  4. वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला चोल स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें भव्यता, विस्तार, और अद्वितीय नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर के निर्माण में ग्रेनाइट पत्थर का उपयोग किया गया है।
  5. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: बृहदेश्वर मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह मंदिर भारतीय कला, इतिहास, और संस्कृति के अध्ययन के लिए एक प्रमुख स्थल है।

 

नंदादेवी और फूलो की घाटी राष्टीय उद्यान – Nanda Devi and Valley of Flowers National Park

  • unesco ने नंदा देवी राष्टीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्टीय उद्यान को वर्ष 1988 में सम्मिलित रूप से व् विश्व धरोहर घोषित किया था ।
  • नंदादेवी राष्टीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1982 में उत्तराखंड के नंदादेवी की पहाङी ( 7816 मी ) पर की गई थी ।
  • फूलों की घाटी को वर्ष 1982 में राष्टीय उद्यान घोसित किया गया था । यह उद्यान 87.50 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है ।
  • इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्मिथ और उनकी साथी एल. होल्डसवर्थ ने वर्ष 1931 में लगाया था ।
  • स्मिथ ने इस घाटी से प्रभावित होकर 1938 में ‘वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ नामक एक पुस्तक लिखी ।

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान की मुख्य विशेषताएँ : Main features of Nanda Devi National Park

  1. स्थान: यह उद्यान नंदा देवी पर्वत के चारों ओर स्थित है, जो भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है।
  2. परिसीमाएँ: उद्यान में पहाड़ी क्षेत्र, बर्फ से ढकी चोटियाँ, और हिमनदियाँ हैं। यहाँ के गहरे घाटियों और ऊँचे पर्वतों से मनमोहक दृश्य दिखाई देते हैं।
  3.  उद्यान : उद्यान में विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का घर है, जिसमें हिमालयी थार, हिमालयी काले भालू, और स्नो लेपर्ड जैसे दुर्लभ जीव शामिल हैं।
  4. पारिस्थितिकी: उद्यान की पारिस्थितिकी बहुत ही नाजुक है, और यह उच्च ऊँचाई पर स्थित है, जिसके कारण यहाँ का वातावरण ठंडा रहता है।

 

फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान की मुख्य विशेषताएँ :Main Features of Valley of Flowers National Park

  1. स्थान: यह उद्यान बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित है और इसके खूबसूरत फूलों के लिए जाना जाता है।
  2. पुष्प वैभव: उद्यान में विभिन्न प्रकार के अल्पाइन फूल पाए जाते हैं जो पूरे गर्मियों के मौसम में खिलते हैं। यहाँ हिमालयी जड़ी-बूटियाँ और औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं।
  3. ट्रेकिंग: यह स्थान ट्रेकर्स के लिए बहुत ही लोकप्रिय है, और यहाँ आने वाले पर्यटक प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाने के लिए ट्रेक करते हैं।
  4. वन्यजीव: उद्यान में भी विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का घर है, जिसमें हिमालयी थार, हिमालयी भालू, और विभिन्न प्रकार के पक्षी शामिल हैं।

 

साँची का स्तूप –  Sanchi-Stupa

  • मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के साँची नामक स्थान पर स्थित ‘साँची का बौद्ध स्तूप’ भारत में पत्थरों से निर्मित सबसे पुरानी इमारतों में से एक है । मूल रूप से इसे मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में बनवाना शुरू किया था ।
  • यह स्तूप महात्मा बुद्ध के अवशेषों पर बना है । यह 91 मी  ऊंची पहाड़ी पर निर्मित है ।
  • इसके चारों और सुन्दर परिक्रमा पथ जाओ बलुआ पत्थर के बने चार चोरण स्तूप के चतुर्दिक स्थित है जिनमे लम्बे – लम्बे पट्टको पर बुद्ध के जीवन से सम्बंदित विशेषतः जातको में वर्णित कथाओ का मूर्तिकारी के रूप में उदभूत अंकन किया गया है ।
  • साँची के स्तूप के प्रबंधन व संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत है
  • unesco  द्वारा साँची के बौद्ध स्तूप को वर्ष 1989 में विश्व विरासत स्थल के रूप में घोषित किया गया था ।

साँची के स्तूप की मुख्य विशेषताएँ : Main features of Sanchi Stupa

  1. प्रथम स्तूप: साँची के सबसे प्रमुख और पुरातन स्मारकों में से एक प्रथम स्तूप है। इसे सम्राट अशोक ने 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया था। इस स्तूप में बुद्ध के अवशेष रखे गए थे, जो इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनाते हैं।
  2. तोरण: प्रथम स्तूप के चारों ओर चार भव्य तोरण (प्रवेश द्वार) हैं, जो अद्वितीय नक्काशी और मूर्तियों से सजाए गए हैं। इन तोरणों पर बौद्ध कथाओं, जातकों, और विभिन्न धार्मिक दृश्यों का चित्रण किया गया है।
  3. अन्य स्तूप: साँची में अन्य स्तूप भी हैं, जैसे द्वितीय और तृतीय स्तूप, जो महत्वपूर्ण बौद्ध धरोहर हैं। ये स्तूप भी महत्वपूर्ण अवशेष और ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करते हैं।
  4. मंदिर और विहार: साँची के परिसर में बौद्ध मंदिर और विहार भी पाए जाते हैं, जो बौद्ध धर्म के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रदर्शन करते हैं।

 

भीमबेटका पाषाण आश्रय – Bhimbetka stone shelter

  • भारत की सबसे प्राचीन गुफाओ में से एक भीमबेटका गुफाएँ एवं पाषाण आश्रय स्थल मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है ।
  • यह स्थान चारों और से विंध्य पर्वत से घिरा हुआ है जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है ।
  • ये गुफाएँ एवं आश्रय आदिमानवों द्वारा बनाए गए शैलचित्रों एवं शैलाश्रयों के लिये विश्व प्रसिद्ध है ।
  • भारत नई वर्ष 1958 में इन गुफाओ एवं चट्टानों की खोज की थी । इन गुफाओं में प्राकृतिक लाल और सफ़ेद रंगों से वन्यप्रणाली के शिकार दृश्यों के आलावा घोड़े हाथी, बाघ आदि के चित्र उकेरे गए है ।
  • वर्ष 2003 में इसे विश्व विरासत स्थल घोषित्त  किया गया ।

भीमबेटका पाषाण आश्रय की मुख्य विशेषताएँ : Main features of Bhimbetka stone shelter

  1. रॉक आर्ट: भीमबेटका के पाषाण आश्रयों में अद्वितीय रॉक आर्ट पाई जाती है, जिसमें गुफा चित्र, चित्रलेख, और नक्काशी शामिल हैं। इन चित्रों में जानवरों, मानव आकृतियों, शिकार दृश्य, नृत्य, और अन्य दैनिक जीवन के दृश्य शामिल हैं।
  2. गुफाएँ और पाषाण आश्रय: यहाँ कई पाषाण आश्रय और गुफाएँ हैं, जिनमें प्रागैतिहासिक मानवों ने निवास किया था। ये आश्रय और गुफाएँ मानव इतिहास की शुरुआत और उनके जीवनशैली का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  3. पुरातात्विक महत्त्व: भीमबेटका पाषाण आश्रय प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक की सभ्यता और संस्कृति के प्रमाण प्रदान करता है। यह स्थल वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, और पुरातात्विक विशेषज्ञों के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन का केंद्र है।
  4. जैव विविधता: भीमबेटका का क्षेत्र हरित और प्राकृतिक सुंदरता से भरा है, जो वन्यजीवों और पक्षियों के लिए एक आदर्श निवास स्थान है।
  5. दर्शनीय स्थल: भीमबेटका एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जहाँ पर्यटक प्रागैतिहासिक कला और इतिहास का अनुभव करने आते हैं। यहाँ गाइडेड टूर भी उपलब्ध हैं जो पर्यटकों को स्थल के महत्त्व और रॉक आर्ट के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।

 

दिल्ली में स्थित हुमायु का मकबरा का वर्णन –  Description of Humayun’s Tomb located in Delhi

  • दिल्ली स्थित हुमायु के मकबरे का निर्माण मुग़ल बादशाह हुमायु की पत्नी हाजी बेगम  द्वारा 1565 से 1572 ई.  के बीच करवाया गया था ।
  • इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायुनी के अनुसार इस मकबरे का मुख्य वास्तुकार मिराक मिर्जा गियात था, जिसे हेरात, बुखारा ( वर्तमान उज्बेकिस्तान ) से विशेष रूप से बुलवाया गया था ।
  • इस मकबरे को बनाने में मूल रूप से बलुआ पत्थरो का ( गारे – चुने से जोड़कर ) प्रयोग की सतह, झरोखों की जालियों द्वारा चौखटों और छज्जो के लिये सफ़ेद संगममर के पत्थरों  का प्रयोग किया गया है ।
  • इसके परिसर में चारबाग उद्यान, नाई का गुम्ब्द, ईसा खा नियाजी का मकबरा भी स्थित है ।
  • unesco ने वर्ष 1993 में हुमायु के मकबरे को विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

हुमायूँ के मकबरे की मुख्य विशेषताएँ :Main features of Humayun’s Tomb

  1. वास्तुकला: मकबरा इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसमें मुख्य भवन का निर्माण लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से किया गया है। इसका गुंबद सफेद संगमरमर से बना है, जो इसकी सुंदरता को बढ़ाता है।
  2. बाग़: मकबरे के चारों ओर एक विशाल चारबाग़ शैली का बाग़ है। इस बाग़ में नहरें, फव्वारे, और सुंदर पथ बनाए गए हैं जो मकबरे के सौंदर्य को बढ़ाते हैं।
  3. मुख्य मकबरा: मुख्य मकबरे में हुमायूँ की कब्र स्थित है। इसके अलावा, मकबरे के अंदर और उसके चारों ओर कई अन्य मुगल शासकों और उनके परिवार के सदस्यों की कब्रें भी हैं।
  4. कला और नक्काशी: मकबरे की दीवारों, दरवाजों, और खिड़कियों पर सुंदर नक्काशी और जाली का काम किया गया है। इस पर मुगल कला के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया गया है।
  5. इतिहास: हुमायूँ का मकबरा मुगल सम्राट हुमायूँ के प्रति सम्मान के रूप में बनाया गया था। यह मकबरा मुगल वास्तुकला के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है, जिसने बाद में ताजमहल जैसी संरचनाओं को प्रेरित किया।
  6. पर्यटन: हुमायूँ का मकबरा दिल्ली के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। यहाँ आने वाले पर्यटक इसकी सुंदरता, वास्तुकला, और ऐतिहासिक महत्त्व का अनुभव करने के लिए आते हैं।

 

दिल्ली के कुतुबमीनार एवं उसका परिसर –    Delhi’s Qutub Minar and its complex

  • दिल्ली के महरौली  नामक गांव में स्थित कुतुबमीनार का निर्माण कार्य के गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 ई.  में प्रारम्भ करवाया था ।
  • प्रारम्भ में इसकी उचाई 225 फ़ीट और चार मंजिले होनी थी । ऐबक के समय (1210 ई. ) एक मंजिल ही  बन सकी थी ।
  • शेष निर्माण कार्य इल्तुतमिश के काल में पूर्ण हुआ । इसकी पहली मंजिल 65 फ़ीट, दूसरी 51 फ़ीट, तीसरी 41 फ़ीट, चौथी 26 फ़ीट,  तथा पांचवी 25 फ़ीट है ।
  • फिरोज शाह तुगलक के काल में चौथी मंजिल को प्राकृतिक आपदा के कारण क्षति पहुंची थी । उसके काल में दों मंजिलों का निर्माण करा दिया गया था ।
  • कुतुबमीनार परिसर में और भी कई इमारते है, जैसे – कुव्वत – उल – इस्लाम मस्जिद, अलाई दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा, लौह स्तम्भ आदि ।
  • वर्ष 1993 में unesco ने कुतुबमीनार तथा उसके परिसर को सम्मलित रूप से विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

कुतुब मीनार और उसके परिसर की मुख्य विशेषताएँ : Main features of Qutub Minar and its complex

  • कुतुब मीनार: यह मीनार एक विशाल मीनार है जो 73 मीटर ऊँची है और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। मीनार में पाँच मंज़िलें हैं, जो घुमावदार सीढ़ियों द्वारा जुड़ी हुई हैं। प्रत्येक मंज़िल में बाल्कनी है, और मीनार की सतह पर कुरान की आयतें और नक्काशी देखी जा सकती है। मीनार का निर्माण दिल्ली सल्तनत के पहले शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने शुरू किया था और इसे उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा किया।
  • अलाई दरवाजा: यह परिसर के भीतर स्थित एक दरवाजा है, जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था। यह इमारत दक्कन में निर्मित स्थापत्य शैली का अच्छा उदाहरण है।
  • अलाई मीनार: यह मीनार अलाउद्दीन खिलजी द्वारा कुतुब मीनार की ऊँचाई बढ़ाने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन इसका निर्माण पूरा नहीं हो सका।
  • कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद: यह भारत में निर्मित पहली मस्जिद है और कुतुब मीनार के आधार में स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण कुतुब-उद-दीन ऐबक ने करवाया था और इसमें सुंदर नक्काशी और जाली का काम है।
  • आयरन पिलर: कुतुब मीनार परिसर में स्थित आयरन पिलर एक ऐतिहासिक स्तंभ है जो प्राचीन भारत के धातु विज्ञान के उत्कृष्टता को दर्शाता है। इस स्तंभ में जंग नहीं लगता है, जो इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनाता
  • है।
    अन्य स्मारक: परिसर में इल्तुतमिश, अल्तमश, और अलायी दरवाजा जैसे अन्य स्मारक भी शामिल हैं।

 

भारत की पहाड़ी माउण्टेन रेलवे का वर्णन – Description of Indian Mountain Railways

  • भारत के पहाड़ी रेलवे के अंतर्गत तीन रेलवे को शामिल किया जाता है पहला, दार्जीलिंग हिमालयन रेलवे  इसे ट्रॉय ट्रेन के नाम से जाना भी  जाता है इसका निर्माण 1879 से 1881 के बीच किया गया था ।
  • यह न्यू जलपाईगुड्डी से दार्जिंग के बीच चलती है इसकी कुल लम्बाई 78 किमी है । दूसरा नीलगिरि पर्वतीय रेल यह तमिलनाडु में स्थित इसे वर्ष 1908 में ब्रिटिश राज की दौरान बनाया गया था ।
  • इस रेलवे का परिचालन आज भी भाप के इंजनों द्वारा किया जाता है इसकी कुल लम्बाई 46 किमी है, यह मेट्टुपालयम को उटकमंडाम से जोड़ता है ।
  • तीसरा कालका शिमला रेलवे इसका निर्माण वर्ष 1998 में हुआ था यह कालका को शिमला से जोड़ता है ।
  • unesco  द्वारा वर्ष 1999 में सम्मलित रूप से भारत की माउण्टेन रेलवे को विश्व विरासत स्थल घोषित किया था ।

 

> दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे: Darjeeling Himalayan Railway

  1. यह रेलवे मार्ग पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है और न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक चलता है। यह 88 किलोमीटर लंबा मार्ग है और 2,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित दार्जिलिंग तक जाता है।
  2. इस रेलवे की शुरुआत 1881 में हुई थी और यह छोटी गेज (610 मिमी) पर संचालित होती है।
  3. मार्ग में कई घुमावदार मोड़, पुल, और सुरंगें हैं, जो यात्रियों को शानदार पहाड़ी दृश्यों का अनुभव कराते हैं।
  4. यह रेलवे “टॉय ट्रेन” के नाम से भी प्रसिद्ध है और दार्जिलिंग के चाय बागानों, घाटियों, और पहाड़ों के बीच से गुजरता है।

 

> नीलगिरी माउंटेन रेलवे: Nilgiri Mountain Railway:

  • यह रेलवे मार्ग तमिलनाडु राज्य में स्थित है और मेट्टुपालयम से ऊटी (ऊटीकंड) तक जाता है। इसकी कुल लंबाई लगभग 46 किलोमीटर है।
  • इस रेलवे की शुरुआत 1899 में हुई थी और यह मीटर गेज (1,000 मिमी) पर संचालित होती है।
  • यह रेलवे एक अद्वितीय रैक और पिनियन प्रणाली का उपयोग करती है, जिससे यह ऊँचाई पर चढ़ाई करने में सक्षम होती है।
  • यह मार्ग यात्रियों को ऊटी की सुंदर घाटियों, चाय के बागानों, और सुरम्य स्थलों का आनंद देता है।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      > > > कालका-शिमला रेलवे: Kalka Shimla Railway:
  • यह रेलवे मार्ग हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है और कालका से शिमला तक चलता है। इसकी कुल लंबाई लगभग 96 किलोमीटर है।
  • इस रेलवे की शुरुआत 1903 में हुई थी और यह नैरो गेज (2 फीट 6 इंच) पर संचालित होती है।
  • मार्ग में 100 से अधिक सुरंगें और 800 से अधिक पुल हैं, जो इसे एक अद्वितीय यात्रा अनुभव प्रदान करते हैं।
  • यह रेलवे शिमला की पहाड़ियों और घाटियों के माध्यम से गुजरता है, जिससे यात्रियों को अद्वितीय दृश्य देखने को मिलते हैं।

 

बिहार बोधगया  में महाबोधि मंदिर परिसर –

  • बिहार के बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में पहले मंदिर  का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी सदी मी करवाया गया था ।
  • वर्तमान मंदिर 5 वी सदी का बना हुआ मंदिर है यह पूरी तरह से ईंटों से बना बौद्ध मंदिरों में से एक है ।
  • महाबोधि मंदिर का स्थल महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ीं घटनाओ और उनकी पूजा से सम्बंधित तथ्यों की असाधारण अभिलेख प्रदान करते है ।
  • इस मंदिर में बुद्ध की एक बहुत बड़ी प्रतिमा है, जो पद्मासन मुद्रा में है । 48600 हेक्टयेर क्षेत्र में फैले महाबोधि परिसर में 50 मी ऊँचा मंदिर, पवित्र बोधि वृक्ष तथा भगवान बुद्ध के अन्य छह पवित्र स्थल है ।
  • वर्ष 2001 में बोधगया के महाबोधि मंदिर परिसर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।

 

महाबोधि मंदिर परिसर की मुख्य विशेषताएँ : Main Features of maHabodhi Temple Complex

  1. महाबोधि मंदिर:
    यह मंदिर बौद्ध धर्म के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह 6वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और बाद में 11वीं और 19वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया गया।
    मंदिर के अंदर एक बड़ा बुद्ध प्रतिमा है जो ध्यान मुद्रा में है और यह प्रतिमा गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के क्षण को दर्शाती है।
    मंदिर की ऊँचाई लगभग 50 मीटर है और इसमें सुंदर नक्काशी और वास्तुकला देखी जा सकती है।
  2. बोधि वृक्ष:
    महाबोधि मंदिर के पास स्थित है बोधि वृक्ष, जिसके नीचे गौतम बुद्ध ने ध्यान लगाकर ज्ञान प्राप्त किया था। वर्तमान बोधि वृक्ष मूल वृक्ष के एक शाखा से उगाया गया है और इसे बौद्ध धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
  3. अन्य महत्वपूर्ण स्थल:
    अनिमेष लोचन स्तूप: यह स्तूप बौद्ध अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वह स्थान है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ध्यान लगाकर पहली बार ध्यान लगाया था।
  4. रत्नागार चौत्य: यह वह स्थान है जहां बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति के बाद अपना पहला सप्ताह बिताया था।
  5. परिसर के अन्य स्थल:
    परिसर में अन्य महत्वपूर्ण स्थल भी हैं जैसे कि चैतन्य स्तूप, ध्यान स्थल, और विभिन्न बौद्ध स्मारक।

 

चम्पानेर – पावागढ़ पुरातातिवक उद्यान – Champaner – Pavagadh Archaeological Park –

  • गुजरात के चम्पानेर तथा पावागढ़ क्षेत्र में फैले पुरात्विक उद्यान में ऐसे अनेक महत्वपूर्ण स्थल है, जो ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से उत्कृष्ट है ।
  • यहाँ वृहत स्तर पर उत्खनित पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं जीवित सांस्कृतिक धरोहर सम्पति की बहुतायत है ।
  • इस उद्यान में प्रगैतिहसिक चैकोलिथिक स्थल, एक प्राचीन हिन्दू राज्य ककी राजधानी का एक महल व किला तहा सोलवी शताब्दी के गुजरात की राजधानी के अवशेष मिले है ।
  • यह अन्य अवशेषों के साथ 8 वी से 14 वी शताब्दी के बीच बने दुर्ग, महल, धार्मिक भवन, आवासीय परिसर, कृषि भूमि और जल प्रतिष्ठान भी है ।
  • पावागढ़ पहाड़ी के शिखर पर बना ‘कालिका माता मंदिर’ अति पावन स्थल है , यह स्थल एक  मात्र पूर्ण और अपरिवर्तित इस्लामी मुगल, पूर्ण शहर है ।
  • वर्ष 2004 में चम्पानेर -पावागढ पुरातत्व उद्यान को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था ।

चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्विक उद्यान की मुख्य विशेषताएँ : Main features of Champaner-Pavagadh Archaeological Park

  1. चंपानेर शहर:
    यह शहर गुजरात के प्राचीन ऐतिहासिक शहरों में से एक है, जो पहले गुजरात के सुल्तानों की राजधानी थी।
    चंपानेर में मुगल और गुजराती वास्तुकला के अद्वितीय उदाहरण देखे जा सकते हैं, जैसे कि मस्जिदें, मंदिर, महल, और अन्य संरचनाएँ।
    प्रमुख स्मारकों में जामा मस्जिद, केवड़ा मस्जिद, और नागीना मस्जिद शामिल हैं।
  2. पावागढ़ की पहाड़ी:
    यह पहाड़ी चंपानेर के पास स्थित है और यहाँ एक प्रसिद्ध दुर्ग (किला) है जो सुल्तानों के शासनकाल के दौरान महत्वपूर्ण था।
    पहाड़ी पर प्रसिद्ध माँ काली का मंदिर भी है, जिसे पावागढ़ काली मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
  3. जल आपूर्ति प्रणाली:
    चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्त्विक उद्यान में प्राचीन जल आपूर्ति प्रणाली के अद्वितीय उदाहरण हैं, जैसे कि बावड़ी (कुंए) और जलाशय।
  4. अन्य महत्वपूर्ण स्थल:
    उद्यान में अन्य महत्वपूर्ण स्थल भी हैं, जैसे कि ऐतिहासिक मकबरों, दरवाजों, और अन्य पुरातात्त्विक संरचनाओं की बारीकियाँ।

 

छात्रपति शिवाजी टर्मिनस ( पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनल ) –  Chhatrapati Shivaji Terminus (formerly Victoria Terminal) –

  • भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में अरब सागर के तट पर स्थित छत्रपती शिवाजी टर्मिनस मध्य रेलवे का मुख्यालय है ।
  • वर्ष 1878 में प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस ने इस स्टेशन का नक्शा तैयार किया था, जिसके तुरंत बाद इसका निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ ।
  • लगभग दस वर्षो के बाद इसका निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ ।
  • यह स्टेशन भारत का पहला ऐसा स्टेशन है, जिसका निर्माण नव – गॉथिक शैली में किया गया था, इस स्टेशन का केंद्रीय गुम्बद लगभग 330 फुट लम्बा है, जो लगभग 1200 फुट लम्बी ट्रेन रोड से जुड़ा हुआ है , जब इस स्टेशन का निर्माण हुआ था, तरब यहाँ प्लेटफॉर्म की संख्या 9 थी वर्तमान में यह 18 है ।
  • इस स्टेशन को वर्ष 2004 में विश्व विरासत स्थल घोसित किया गया ।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस की मुख्य विशेषताएँ :Highlights of Chhatrapati Shivaji Terminus

  • वास्तुकला:
    स्टेशन का निर्माण 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवेन्स द्वारा किया गया था। इसका निर्माण 1878 में शुरू हुआ और 1888 में पूरा हुआ।
    इसकी वास्तुकला गॉथिक पुनरुद्धार शैली और भारतीय शिल्प कला के मिश्रण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
    स्टेशन के मुख्य भवन में शानदार गुंबद, मेहराब, और नक्काशी देखी जा सकती है। इसके अलावा, इसमें विट्राज खिड़कियाँ और सजावटी लोहे के काम भी हैं।
  • सुविधाएँ:
    छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है और यह शहर के स्थानीय और अंतरराज्यीय रेल सेवाओं का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
    स्टेशन में यात्रियों के लिए विभिन्न सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जैसे कि प्रतीक्षालय, टिकट काउंटर, रेस्टोरेंट, और अन्य सेवाएँ।
  • इतिहास:
    स्टेशन का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस किया गया है, जो महाराष्ट्र के महान राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर है।
    इसका ऐतिहासिक महत्व भारतीय रेलवे के विकास और मुंबई शहर के इतिहास से जुड़ा हुआ है।
  • पर्यटन:
    छत्रपति शिवाजी टर्मिनस एक प्रमुख पर्यटक स्थल है और इसकी सुंदर वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के कारण पर्यटक इसे देखने आते हैं।
    यहाँ आसपास कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल भी हैं, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण के प्रमुख केंद्र हैं।

 

नालंदा महावीर पुरातत्व स्थल – Nalanda Mahavir Archaeological Site –

  • बिहार की राजधानी पटना से 90 किमी दक्षिण में स्थित नालंदा महाबिहार के पुरातत्व स्थल को केंद्र तथा राज्य की संयुक्त पहल पर unesco  द्वारा वर्ष 2014 ई. में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।
  • नालंदा महाविहार की स्थापना गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम के आदेश पर 450 – 470  ई. के बीच हुई थी ।
  • पांचवी से बारहवीं सदी में नालंदा बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था । सातवीं सदी में चीनी यात्री हेनसांग ने यहाँ रहकर अध्ययन किया था ।
  • यह गौरवशाली विश्वविद्यालय तब नष्ट हो गया था, जब बख्तियार खिजली ने 1193 ई. मी इसे जला दिया था ।
  • नालंदा महाविहार के खण्डहरों की खोज कनिंघम ने की थी, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में तीन लाइब्रेरी थी इनके नाम रत्नसागर, रत्नोदधि व रत्नरजिता थे ।
  • ऐसा मना जाता है की जब इसमें आग लगी थी तो ये लाइब्रेरी छह माह तक जलती रही थी ।

 

नालंदा महाविहार की मुख्य विशेषताएँ : Main features of Nalanda Mahavihara

 

  • इतिहास:
    नालंदा का इतिहास 5वीं शताब्दी से शुरू होता है और यह 12वीं शताब्दी तक एक प्रमुख बौद्ध शिक्षा केंद्र बना रहा।
    यह स्थल महाविहार के रूप में प्रसिद्ध था, जहाँ हजारों छात्र अध्ययन करते थे और बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों के विद्वान शिक्षा देते थे।
  • आर्किटेक्चर:
    नालंदा के अवशेषों में विहार (मठ), स्तूप, मंदिर, और शिक्षा के भवन शामिल हैं।
    यहाँ के विहार बहुमंजिला होते थे, जिनमें छात्र रहते थे और अध्ययन करते थे। इन विहारों में प्रांगण, स्तूप, पुस्तकालय, और सभागार होते थे।
    अवशेषों में लाल ईंटों का व्यापक उपयोग किया गया है, जो उस समय की प्रमुख निर्माण सामग्री थी।
  • पुस्तकालय:
    नालंदा में एक प्रसिद्ध पुस्तकालय था जिसे “धर्मगंज” कहा जाता था। यह पुस्तकालय विभिन्न ग्रंथों और पांडुलिपियों का संग्रह था।
    पुस्तकालय की विभिन्न मंजिलें थीं और यह ज्ञान का एक प्रमुख स्रोत था।
  • अन्य महत्वपूर्ण स्थल:
    नालंदा में महत्वपूर्ण स्तूप और मंदिर भी पाए जाते हैं, जैसे कि सरिपुत्त स्तूप और अन्य धार्मिक स्मारक।
    यह स्थल बुद्ध, नागार्जुन, और अन्य प्रमुख बौद्ध विद्वानों के अध्ययन और शिक्षा से भी जुड़ा है।
  • वर्तमान स्थिति:
    नालंदा के अवशेषों की खुदाई और संरक्षण किया गया है, जिससे यहाँ के इतिहास और संस्कृति के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हुई है।
    यहाँ एक नया नालंदा विश्वविद्यालय भी स्थापित किया गया है, जो इस ऐतिहासिक स्थान को फिर से शिक्षा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहा है।

 

भारत के पश्चिमी घाट – western ghats of india

  • भारत के पश्चिमी तट  पर स्थित पर्वत श्रृंखला को पश्चिमी घाट या सहाद्रि कहते है । दककणी पठार के पश्चिमी किनारे के साथ – साथ  यह पर्वतीय श्रंखला उत्तर से दक्षिण की और 1600 किमी लम्बी है ।
  • जैव विविधता की दृष्टि से विश्व में पश्चिमी घात का 8 वा स्थान है ।
  • वह गुजरात और महाराष्ट की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट, गोवा, कर्नाटक, तमिनाडु और केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्त हो जाती  है ।
  • यहाँ की पहाड़ी का कुल क्षेत्रफल 16000 वर्ग किमी है । और औसत उचाई लगभग 1200 मी ( 3900 फीट ) है ।
  • पश्चिमी घाट में उभयचरों, पक्षियों, स्तनपायियों व फूलो की अनेक प्रजातियां पाई जाती है । इसकी सबसे ऊंची चोटी अनाईमुडी है ।
  • वर्ष  2010 में पश्चिमी घाट को विश्व विरासत स्थल घोषित किया ।

 

दिल्ली में स्थित लाल किला परिसर – Red Fort complex located in Delhi

  • दिल्ली में स्थित लाल किला का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ नई 1638 ई. मी प्रारंभ करवाया तथा, जो लगभग 1648 ई. में बनकर तैयार हुआ ।
  • शाहजहाँ ने 1638 ई. में मुग़ल राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित  करवाया था ।
  • मूल रूप से लाल और सफ़ेद पत्थरों से निर्मित लाल किले का मुख्य वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी था ।
  • इसकी स्तापत्य कला भारतीय, यूरोपियों तथा फ़ारसी स्थापत्य शैलियों से स्पष्ट रूप से मिलती – जुलती है ।
  • किलों की इमारतों में संगमरमर मुख्य सजावट और डबल गुम्बद मुग़ल स्थापत्य शैली का उदहारण है लाल किला के परिसर में लाहौरी गेट, नक्कारखाना, दीवान – ए – आम, मोती मस्जिद, हयात बख्स बाग़ म्यूजियम आदि अन्य दर्शनीय स्थल है ।
  • वर्ष 2007 में लाल किला परिसर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।

 

पंजाब और हरियाणा केंद्र के चंडीगढ़ कैपिटल काम्प्लैक्स का वर्णन – Description of Chandigarh Capital Complex of Punjab and Haryana Center

  • चंडीगढ़ की सेक्टर 1 में स्थित कैपिटल कॉम्प्लेक्स पंजाब और हरियाणा की प्रशासनिक भवनों का केंद्र है
  • यह कॉम्प्लेक्स वास्तुकार ली कोरबुसियर के उत्कृस्ट वास्तुशिप का नमूना है और इससे चंडीगढ़ के नियोजित शहर के होने की झलक मिलती है ।
  • इस परिसर के अंदर सचिवालय विधानसभा और उच्च न्यायलय की इमारते है । केपिटल कॉम्प्लेक्स के बीच ‘ओपन हैंड’ बना है, जो चंडीगढ़ का अधिकार चिन्ह है ।
  • पर्यटक यहाँ के भव्य इमारतों को देख सकते है । इन भवनों को करीब को देखने के लिए सेक्टर – 9 स्थित टूरिस्ट ब्यूरों या सेक्टर – 17 प्लाजा स्थित ट्रीस्ट रिसेप्शन सेंटर से अनुमति लेनी पड़ती है ।
  • unesco  द्वारा वर्ष 2016 में कैपिटल कॉम्प्लेक्स को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया । चंडीगढ़ में अन्य महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में रॉक गार्डन, रोज  गार्डन, सुखना झील, संग्रहालय आदि प्रमुख रूप से शामिल है ।

 

राजस्थान के पहाड़ी किले – hill forts of rajasthan

  • राजस्थान के पहाड़ी किले जिसमे चितौड़गढ, कुम्भलगढ़, सवाई माधवपुर, झालावाड़, जयपुर और जैसलमेर के 6 राजसी किले शामिल है, लगभग 20 किमी के क्षेत्र में फैले हुए इन किलों में 8 वी शताब्दी से 18 वी शताब्दी तक की राजपुताना साम्राज्य की विरासत को देखा जा सकता है ।
  • इन किलो के परिदृश्य की सुरक्षा के लिए प्राकृतिक साधनों, – जैसे – रेगिस्तान, नदियों, पहाड़ों और घने जंगलों का इस्तेमाल किया गया है । इन किलों में जल संरक्षण के लिए बड़े – बड़े भवन बने हुए है ।
  • राजस्थान के इन छह किलो को सम्मिलित रूप से वर्ष 2013 विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।

राजस्थान के प्रमुख पहाड़ी किले : Major hill forts of Rajasthan

  1. आमेर किला (Amber Fort): जयपुर के पास स्थित, यह किला प्रसिद्ध है अपनी सुंदर वास्तुकला और मांडू कला के लिए। इसे आमेर महल के नाम से भी जाना जाता है।
  2. जैसलमेर किला: जैसलमेर में स्थित यह किला “स्वर्ण किला” के नाम से भी जाना जाता है। यह किला रेत के टीले पर स्थित है और जैसलमेर की पहचान है।
  3. चित्तौड़गढ़ किला: चित्तौड़गढ़ किला राजस्थान के सबसे बड़े किलों में से एक है और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह किला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है।
  4. रणथंभौर किला: रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित, यह किला रणथंभौर के बाघों और इतिहास के कारण प्रसिद्ध है।
  5. कुम्भलगढ़ किला: यह किला उदयपुर के पास स्थित है और यह अपनी विशाल दीवारों और कठिन दुर्गम पहाड़ी पर स्थित होने के लिए प्रसिद्ध है।
  6. गागरोन किला: यह किला राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित है और तीन ओर पानी से घिरा हुआ है।
  7. सज्जनगढ़ किला: उदयपुर के पास स्थित, यह किला माउंटेन पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। यह ऊँची पहाड़ी पर स्थित है और इसे मानसून पैलेस भी कहा जाता है।

 

सिक्किम का सबसे बड़ा कंचन राष्टीय उद्यान – Sikkim’s largest Kanchan National Park

  • कंचन राष्टीय उद्यान सिक्किम का सबसे बड़ा राष्टीय उद्यान है, इसकी स्थापना वर्ष 1977 में की गई  थी ।
  • यह कंचन राष्टीय उद्यान सिक्किम जिले की 850 वर्ग किमी में फैला हैं ।
  • इसके उत्तर में टेंट चोटी, पूर्ण में माउण्ट लामों एंगडेन का रिज, दक्षिण में माउण्ट पण्डिम और पश्चिम कंजनजंगा पर्वत है ।
  • यहाँ जानवरों की कई प्रजातियां, जैसे – हिम तेंदुआ, हिमालयन काला भालू, लाल पांडा, बार्किंग हिरण, ( भौकने वाला हिरण ) अदि मिलते है ।

यहाँ पाए जाने वाले पौधों में ओक, देवदार, सन्टी, मेपल और विदो आदि सम्मिलित है । इस उद्यान में कई पक्षी जैसे की रक्त तीतर, सत्ये ट्रैगोपैन, ओस्प्रे, हिमालयन ग्रिफ्फोने, लेमगिरयर एवं ट्रगोपन तीतर आदि देखे जा सकते है । वर्ष 2016 में कंचनजंगा राष्टीय उद्यान को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।

 

ग्रेट – हिमालय राष्टीय उद्यान –  Great – Himalaya National Park –

  • हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित ग्रेट हिमालयन राष्टीय उद्यान भारत की एक अमूल्य धरोहर है 754 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस उद्यान में कई प्रकार के वनस्पति आवास है
  • इस उद्यान में 376 से अधिक जीव प्रजातियां पाई जाती है ।
  • इनमे 32 स्तनधारी, 180 पक्षी, 3 सरीसृप, 10 उभय चर, 12 कीड़े, 18 घेंघा और 126 प्रकार के मकोड़े शामिल है । इस वर्ष 1999 में राष्टीय उद्यान घोषित किया गया ।
  • unesco  द्वारा वर्ष 2014 में इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।

 

राजस्थान के जन्तर – मन्तर, जयपुर – Jantar Mantar of Rajasthan, Jaipur

  • राजस्थान के जंतर – मन्तर का निर्माण 1718 ई.  में महाराजा सवाई जय सिंह ने एक वेधशाला में समय की जानकारी, सूर्योदय, सूर्यास्त, तथा नक्षत्रों की जानकारी प्राप्त करने के उपकरण अवस्थित थे ।
  • इस वेधशाला में स्थापित यंत्रों में वृहत सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र, राम यंत्र, छोटा यंत्र, आदि मुख्य है ।
  • इसमें करीब 20 मुख्य निश्चित उपकरणों का सेट था । नागि आखों से खगोलीय स्थिति के अवलोकन हेतु डिजाइन किये गए जन्तर – मन्तर में कई नवीन वस्तुओ एवं उपकरणों को लगाया गया था ।
  • unesco ने वर्ष 2010 में इसे विश्व  विरासत स्थल घोषित किया था ।

 

रानी की वाव – Queen’s Vav

  • रानी की वाव गुजरात के पतन जिले मी स्थित है । गुजराती भाषा में बावड़ी ( सीढ़ीदार कुआ ) को वाव कहते है ।
  • इस बावड़ी का निर्माण रानी उदयमति ने 1063 ई. में सरस्वती नदी के किनारे करवाया था । इसलिए इसे रानी की वाव कहा जाता है ।
  • रानी उदयामती सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी थी ।
  • गुजरात के प्राकृतिक भूगभीर्य बदलावों के कारण यह बहुमूल्य धरोहर लगभग 700 वर्षों तक गाड़ की परतों के नीचे दबी हुई थी, जिसे बाद में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खोजा गया था ।
  • बावड़ी में बनी हुई बहुत – सी कलाकृतियों की मूर्तियों में ज्यादातर भगवान् विष्णु से सम्बंधित है ।
  • जुलाई, 2018 में भारत के केंद्रीय बैंक RBI  द्वारा जारी किए गए 100 रुपये के नॉट पर रानी की वाव को दिखाया गया है । var4sh 2014 में रानी की वाव को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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